ग़ज़ल – मन
चंचल नदिया जैसा ये मन
बह जाता भावों में ये मन
उलझन में है हर पल रहता
बुनता ताने बाने ये मन
कभी रेत के टीले चढ़ता
कभी बर्फ़ से खेले ये मन
कभी गगन को है छू जाता
कभी छुए है लहरें ये मन
स्वर्गलोक में कभी ले जाए
कभी नरक दिखलाए ये मन
नये विचारों से लड़ता है
हलचल रोज मचाए ये मन
ये चाहे हो जाए कुछ भी
दिन में चाँद दिखाए ये मन
सारे जग से भले छिपा लो
सारा हाल बताये ये मन
— डॉ सोनिया गुप्ता