राजनीति

लेख– कांग्रेस को नई राजनीतिक पौध औऱ विचार की ज़रूरत

दिल्ली में हुआ कांग्रेस का अधिवेशन इस बात को तरोताज़ा किया है, कि त्याग, सेवा औऱ लंबे संघर्ष का रास्ता देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने तय किया है। पर दुर्भाग्य लोकतांत्रिक परिवेश में उसका इतना है, कि आज वह जुझारू कार्यकर्ताओं की कमी औऱ नीतियों के अभाव में उसका कुनबा दरककर देश के चार छोटे राज्यों में सीमित हो गया है। अब वक्त पुकार रहा कि कांग्रेस यह गहन चिंतन-मनन औऱ वैचारिक विमर्श करें कि उसके दुर्दिन के कारण क्या रहें, औऱ वह इस दुर्दिन की वैतरणी कैसे पार कर सकती है? देश के लोकतांत्रिक इतिहास को यह बात फ़ौरी रूप से पता करनी होगी, औऱ उसपर होमवर्क करके 2019 के लिए तैयार होना पड़ेगा, वैचारिक औऱ नीतियों के स्तर पर भी। नहीं तो 2019 भी हाथ से रेत की तरह फिसल जाएगा। आज कांग्रेस की स्थिति 1980 की नहीं, कि सत्ता आसानी से मिल जाएगी। आज अगर चुनावी प्रबंधन में सबसे कुटिल औऱ शतरंज की चाल कोई पार्टी चल रही है, तो वह भाजपा है। अगर कांग्रेस को भी अपना वजूद बनाना है, तो उसे नीतियो औऱ दल की कार्यप्रणाली में परिवर्तन लाना होगा। उसे समझना होगा, उसका पुनरुत्थान अपनी नीतियों में बार-बार बदलाव लाने से नहीं होने वाला। कांग्रेस को किसी एक विचार पर कायम होना पड़ेगा। चाहें हो धर्मनिरपेक्ष राजनीति हो। या हिन्दू-मुस्लिम राजनीति, क्योंकि देश की तत्कालीन परिस्थिति जो बयाँ करती हैं, उसका एकमात्र ध्येय समझ आता है। हमारे लोकतांत्रिक देश से धर्म औऱ जाति की राजनीति इतनी जल्दी कमज़ोर पड़ने वाली नहीं।

आज के वक्त की राजनीति में भले एक राजा औऱ दूसरी पार्टी रंक की स्थिति में है, लेकिन एक बात दोनों में क़ायम है। वह है, कि सहयोगियों का साथ, औऱ यह साथ किसी का मजबूत नहीं। भाजपा भी गठबंधन के मामले में पिछड़ रहीं। जिसका उदाहरण प्रस्तुत हो रहा टीडीपी और शिवसेना की भाजपा से बेवफाई करना। जिसको अपने आप में समाहित करती हुई भाजपा दिख नहीं रही। आज कांग्रेस की दुःस्वरियाँ बढ़ने का कारण यह भी है, कि वह एकला चलो की नीति भूल चुकी है। जिस कारण वह सत्ता में रहती भी है, तो किराये की दुकान होने की वज़ह से जनसरोकार की बेहतर नीतियां बना नहीं पाती, जिस कारण भाजपा अपना कारवां देश भर में फैलाती जा रही। आज कांग्रेस की मालिन हालत के जिम्मेदार सहयोगी विचारधारा को साथ लेकर चलना भी है। वह चुनाव पूर्व ही किसी सारथी की खोजबीन में लग जाती है, और बेहतर नेतृत्वकर्ता के अभाव में फ़िर उसे राजनीतिक सत्ता से दूर वनवास ही झेलना पड़ता है। केंद्र में अपने पिछले कार्यकाल में कांग्रेस स्वार्थपरक राजनीति का आकंठ केन्द्र बनकर सिर्फ़ रह गई थी। साथ में कुलीनतंत्र का बू सीधा उससे आने लगी थी। अब भी वह बू आनी दूर तो नहीं हुई, लेकिन कांग्रेस को नए विचारों की पौध की आवश्यकता है, साथ में उन अवसरवादी नेताओं से तल्ख़ी बनाने की। जो पार्टी की छवि को मटियामेट करते हैं।

ऐसे में हो सकें, तो कांग्रेस नए आचार-विचार के साथ एकला चलो की राजनीति अपनाएं, तो वह भी उसके लिए नए आयाम स्थापित कर सकता है। आज की लोकतांत्रिक राजनीति स्वार्थ के लिए जाति, धर्म भाषा की संकीर्ण बेल में फंस गई है। राजनीति में अकूत धन बहाया जा रहा। विचारों की धंधली हो रही। जिसमें पीछे भाजपा भी नहीं। तो क्यों न कांग्रेसी नए सिरे का प्रयोग करें, राजनीति में धनबल, बाहुबल के प्रयोग पर अंकुश लगाने के लिए आंदोलित हो, राजनीति जो सेवा भाव मानी जाती थी, उसको प्राश्रय दे, तो उसका हाथ का पंजा कुछ हद तक मजबूत होकर कमल के फूल को खिलने से रोक सकता है। बशर्ते वह ऐसा कर सकें, लेकिन कर्नाटक चुनाव के पूर्व हालिया दिनों में जो स्थिति उभरी, वह कुछ ओर बयां करता है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मन्दिर-मस्जिद और चर्च का चक्कर लगाकर सभी धर्म को रिझाने की कोशिश कर रहें। मतलब पिछले पांच वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद भी जनसरोकार के विषय की राजनीति न कर पाने की स्थिति राहुल गांधी को कमज़ोर बनाती है। कांग्रेस को अगर गांधी का दल कहा जाता है, औऱ महापुरुषों के नाम को लेकर अपनी राजनीतिक बिसात अगर कांग्रेस आज तक ढकेलती आ रही। तो अब उसे गांधी की नीतियों को बढ़ावा देना चाहिए, क्योंकि गांधी औऱ गांधी के विचारों की प्रासंगिकता आज भी भारतीय समाज में व्याप्त है, जो कांग्रेस के लिए संजीवनी बन सकती है।

बशर्ते कांग्रेस अपनी पुरानी नीति यानी गांधी के विचारों को दफनाने से बाज़ आए। आज जिस बबूल के पेड़ पर हमारी रहनुमाई व्यवस्था आम उगाने का फ़त्तूर पाल रही, उसकी जीवनदायिनी कांग्रेस ही है। उसको यह मानना औऱ स्वीकार करके नए सिरे की राजनीति करनी होगी। आज राजनीति सेवा के क्षेत्र के रूप में स्थापित नहीं हो पा रहीं, मतलब साफ़ है, सियासतदां किसी दल का हो वह बदलाव के फ़ेर में पड़ना नहीं चाहता, तो क्या इस बदलाव के लिए कांग्रेस तैयार होगी। किसान कल भी मर रहा था, आज भी मर रहा, तो सिर्फ़ उसके नाम पर राजनीति कर सत्ता में कुछ समय के लिए परिवर्तन किया जा सकता है। स्थायी नहीं। तो क्या किसानों के लिए नए विचार कांग्रेस के पास हैं। कोई वैकल्पिक व्यवस्था कर्जमाफी की कांग्रेस किसानों को दिला पाने में समर्थ है, क्योंकि कर्जमाफी तो सिर्फ़ कोढ़ में खाज बढ़ाने का कार्य करती है। जिस कारण किसान पराश्रित हो जाते हैं। वर्तमान दौर में जो चुनौतियां देश के समकक्ष हैं, उसकी दोषी तो कांग्रेस ही है। जिसने ऐसी नीतियां बनाई, जिस कारण देश में अमीरी-गरीबी का ग़हरा अंतर पैदा हो गया। क्या उसको दूर करने की राजनीतिक सोच कांग्रेस के पास वर्तमान में है। अगर नहीं, तो इन बबूल के जो पेड़ कांग्रेस ने बोए थे, उसको काटने के लिए नई पौध नए विचार कांग्रेस को उत्पन्न करना होगा। अगर अपना वजूद भारतीय लोकतंत्र में बनाए रखना है, औऱ 2019 में बेहतर उपस्थित दर्ज़ कराना है, तो।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896