कुछ तो नेक काम कर रहे नेता-
दर बदर फिर वोट की भीख नहीं मांग रहे नेता
बल्कि हम सबके कर्तव्यों को जगा रहे नेता |
आलसी निठल्ले होकर, बैठे रहते उस दिन घर
हमारी अंतरात्मा को झकझोर के उठा रहे नेता |
धन्नासेठों को दो कदम भी नहीं चलने की आदत होती
कर्तव्य पालन करें पैदल चल-चल खुद सिखा रहे नेता |
लालीपाप लेकर दे आते हो अपना महत्वपूर्ण वोट
समझो उसके दूरगामी परिणाम समझा-दीखा रहे नेता |
जातिवाद का फैला कितना भयंकर मकड़जाल है
इसकी भयावहता से परिचित तुम्हें करा रहे नेता |
निष्क्रिय जन उठो कुम्भ्करनी नींद से अब जागो
इतना चीख -चीखकर तो तुमको जगा रहे नेता |
वोट देने के अधिकार की लाठी सशक्त हो तुम पकड़ो
तुमको यह अधिकार भी तो अधिकार से दिला रहे नेता |
आलसपन-पव्वा-रूपया-मिठाई का लोभ तुम त्यागो
वोट की वज्र चोट दो दागियों को समझा-बुझा रहे नेता |
ना जाने कितने जाति-धर्म में बंट रहे हो तुम सब
परिणाम भुगत रहे हो उसका यह जता रहे नेता |
जातिवाद-राज्यवाद-व्यक्तिवाद का जहर थूकों
घुट्टी की तरह तो तुम्हें राष्ट्रवाद पिला रहे नेता |..सविता मिश्रा ‘अक्षजा’