“घनाक्षरी छंद”
आप भी महान हुए, कुल के सुजान हुए
नारी बीच सखी सारी, मान तो बढ़ाइए।।
मान लीजे शान गिरी, नाचते कदम धिरी
घुँघरू छटक टूटे, उन्हें तो उठाइए।।
तार तार जोर जोर, सूत्र कड़ी उठे शोर
गाँठ गाँठ मनिका पे, हाथ तो लगाइए।।
नयन मगन मन, पुलक पलक धन
तोर मोर कहाँ मोर, भोर तो जगाइए।।
सुबह से शाम हुई, रात भी विरान हुई
दोपहर की धूप है, छाँव फरमाइए।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी