लघुकथा

हरसिंगार

शाम गये दलान में हरसिंगार के पेड़ के पास ही उछल कूद रही थी चिड़िया। प्यार से सब उसे चिड़िया ही बुलाते थे। बहुत चुलबुली थी ना।
हरसिंगार के पेड़ के पास अम्मा तख्त पर बैठे-बैठे ही कई बार टोक चुकीं थीं “रे लड़की कुछ काम कर लिया कर, नही तो अपनी माँ का हाथ ही बँटा लिया कर”। लेकिन दस साल की बेपरवाह चिड़िया पर असर कहाँ होता ।
“अरे वाह अम्मा खूब महक रहा है हरसिंगार इस साल”, दिन में ही शहर से आया था अजीत और अभी अपने गाँव के दोस्तों से मिलकर लौटा तो अपनी भतीजी पर एक नज़र डालते हुए छत पर चला गया।
पौ फटते ही हरसिंगार के फूल कुम्हलाये पड़े थे और चिड़िया
गुमसुम हो चुकी थी।

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - [email protected]