सामाजिक

लेख– समाज में बढ़ता अपराध, सामाजिक उन्नति में बाधक

किसी भी देश या समाज को निरंतर वैश्विक फ़लक़ पर बढ़ते रहने की पहली शर्त क्या होगी। यही कि समाज में शांतिपूर्ण वातावरण हो। यह कैसे संभव हो सकता है। अपराध मुक्त समाज से। तो इसका मतलब सरकारों का पहला काम समाज को अपराध मुक्त बनाने का होना चाहिए, तभी देश औऱ समाज उन्नति कर सकता है। ऐसे में वर्तमान दौर में हमारे देश में अगर अपराधिक प्रवृत्ति बढ़ रही। तो निहितार्थ साफ़ है, उसको नियंत्रित करने का रहनुमाई प्रयास क़ायदे से नहीं हो रहा। अपराध मुक्त समाज के लिए अपराध और अपराधी के मनोविज्ञान को समझना आवश्यक है, पर हमारी व्यवस्था ऐसा कोई पैमाना ढूढ नहीं पा रही। या ढूढने का साहस नहीं कर पा रहीं है। यहां पर एक बात समझना आवश्यक है, कि समाज में किसी व्यक्ति का जन्म अपराधी के रूप में नहीं होती। परिस्थितियों वश वह अपराध के दलदल में समाहित होते जाता है। पेट की भूख शांत करने के लिए वह चोरी, डकैती औऱ अपहरण जैसे अपराधों में संलिप्त हो जाता है। जब आपराधिक गतिविधियों की संख्या समाज में बढ़ने लगती है, तो समाज विकृति रूप में सामने अपनी परछाईं प्रस्तुत करने लगता है। आज के दौर में हमारा समाज तेज़ी से अपराधिक प्रवृत्ति की ओर उन्मुख हो रहा। तो उसके कुछ मुख्य कारणों में से जीवन जीने के लिए मूलभूत आवश्यकताओं जैसे रोटी, कपड़ा और मकान आदि का बंदोबस्त न हों पाना है। इसके साथ आज के भौतिकवादी युग में आपसी वैमनस्यता भी समाज में बढ़ती अपराधिक प्रवृत्ति का कारण है। इन सभी कारणों के इतर जब सत्ता औऱ प्रशासन का शह भी लोगों को मिलना शुरू हो जाए, तो स्थितियां विकराल रूप ग्रहण कर लेती हैं। साथ-साथ अगर समाज में नशाखोरी जैसी लत लोगों को लग जाती है, तो समाज अपना वर्तमान ही धुंधला नही कर लेता, बल्कि उसका भविष्य भी अंधकार की तरफ़ कूच करने लगता है।

ऐसे में किसी राज्य या देश में अपराधिक प्रवृत्ति बेलगाम हो रही, तो इसका सीधा सा अर्थ है पुलिसिया तंत्र कमज़ोर औऱ शिथिल पड़ गया है। और अगर पुलिस व्यवस्था कमज़ोर या निष्क्रिय पड़ गई। तो समाज आक्रांता और भय की तरफ़ कूच कर जाएगा। मध्यप्रदेश की रहनुमाई व्यवस्था बीते कुछ वर्षों में सामाजिक सुधार की दिशा में व्यापक स्तर पर सुधारात्मक पहल का हिस्सा बनी है, तो वहीं कमज़ोर पुलिस तंत्र ने समाज में भय औऱ बिगड़ते सामाजिक वातावरण का माहौल निर्मित किया है। जिसको लेकर अब चिंतित सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी हैं। इसके साथ आज पूरा देश उसी समस्या में आकंठ डूबा हुआ है। अगर मध्यप्रदेश की बिगड़ती क़ानून व्यवस्था के बारे में खोजबीन करें। तो यह दृष्टिगोचर होगा, कि पिछले कुछ समय से सूबे में महिलाओं और बच्चों के प्रति सामाजिक माहौल काफ़ी प्रतिकूल हो चला है। महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों के मामलों में आज के वक्त में प्रदेश पिछड़े औऱ जंगलराज की उपाधि से सुशोभित राज्यों बिहार और उत्तरप्रदेश के समकक्ष पहुँच रहा है। तो यह सूबे के नीति-नियंता के लिए चिंता का विषय तो जरूर होना चाहिए। जिस तरफ़ अब अगर सूबे की रहनुमाई व्यवस्था नज़र उठाकर देखने को तत्पर दिख रही है, तो यह स्वागतयोग्य क़दम है सूबे को अपराध मुक्त बनाने की दिशा में। 

                      बीते दिनों मध्यप्रदेश सूबे में अपराध के ग्राफ़ को कम करने और पुलिस तंत्र की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए कड़ा संदेश मुख्यमंत्री ने दिया। उन्होंने कहा, कि मुझे अब सिर्फ़ एक्शन चाहिए। विपक्ष भले आरोप लगा रहा कि पुलिस को सक्रिय और परिणामदायक इसीलिए बनाने की बात अब हो रही, क्योंकि चुनाव सिर पर है। कुछ भी हो लेकिन देर आएं, दुरस्त आएं। अगर पुलिसिया तंत्र में सुधार के लिए अल्टीमेटम सूबे की रहनुमाई व्यवस्था ने जारी कर दिया है। तो इसका फ़ायदा तो अवाम को होगा ही। मध्यप्रदेश सरकार ने जनमहत्व के विषयों पर अपने कार्यकाल में काफ़ी कार्य किए हैं। फ़िर भी कुछ क्षेत्र में अभी सुधार की भरसक गुंजाइश है। जिसमें कृषि, राजस्व के साथ पुलिस व्यवस्था है। आज अगर यह कहा जाए, कि रहनुमाई तंत्र की अनदेखी की वज़ह से पुलिस व्यवस्था नकारापन का शिकार हो गई है। तो यह कहना ग़लत न होगा। सूबे में पुलिस तंत्र की शिथिलता औऱ नकारेपन के कुछ कारण ढूढें तो पता चलेगा, कि पुलिसकर्मियों की पदस्थापना में राजनीतिक दखलंदाजी, कार्य के प्रति समर्पण न होना, पुलिस बल में कमी औऱ समाज के जनों के साथ पुलिस तंत्र का जीवंत सम्पर्क न होना है। जिसको दूर करके ही किसी प्रदेश या समाज को अपराध मुक्त प्रदेश बनाया जा सकता है। 

वैसे कहते हैं, किसी प्रदेश की क़ानून व्यवस्था एक दिन में बदहाली का शिकार नहीं होती। वहीं कहानी मध्यप्रदेश के साथ देश की भी है। ये सब बातें ठीक है, लेकिन हमारा ध्यान एक बात की तरफ़ आकर्षित हो रहा। जो भाजपा के अध्यक्ष नन्दकुमार चौहान ने बोली है। उन्होंने कहा, कि कई बार पकड़े गए आरोपियों को छुड़ाने के लिए राजनीतिक लोगों को सिफारिश करनी पड़ती है। यह सच व्यवस्था का कड़वा घूंट है। जिससे निज़ात जब मिलेगी, तभी पुलिस स्वतंत्र होकर काम कर पाएगी। तो क्या समाज को अपराध मुक्त बनाने के लिए जो अल्टीमेटम शिवराज सरकार ने पुलिस व्यवस्था को दी है। वह सफ़ल तो तभी होगा, जब पुलिस की कार्यप्रणाली में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा। उन्हे स्वतंत्र और स्थाई होकर कार्य करने दिया जाएगा, औऱ पुलिस तंत्र में व्याप्त कमियों को दूर करने के साथ पुलिस बल में बढ़ोतरी की जाएगी। साथ में अगर अपराध मुक्त समाज बनने की पहली सीढ़ी आज के दौर में समाज का चरित्रिक उत्थान है। तो साथ में प्रशासनिक व्यवस्था पर राजनीतिक दवाब ख़त्म होना चाहिए। समाज को अपराध मुक्त बनाने के लिए प्रथम प्रयास यह होना चाहिए कि शिक्षा की ज्योति सब तक पहुँचे, और वह ज्योति मैकाले की शिक्षा पद्धति से नहीं। जिसका एकमात्र उद्देश्य नौकरी योग्य लोग तैयार करना हो, बल्कि चरित्र निर्माण वाली शिक्षा व्यवस्था हो। ऐसी शिक्षा नहीं जो बेरोजगारी को पैदा करें, शिक्षा ऐसी हो जो सामाजिक विषमता को दूर करने वाली हो। इसके लिए गुरुकुल पद्धति की तरफ़ दुबारा हमारे समाज को उन्मुख होना चाहिए, क्योंकि आज की शिक्षा व्यवस्था सिर्फ़ सामाजिक तौर पर भेड़चाल की शिकार हो गई है। समाज में लोगों को न्याय जल्द मिलना सुनिश्चित हो। समाज में संसाधनों की असमानता का दमन हो। अपराधी को अपराध की सज़ा से बचा पाने का अवसर शून्य में तब्दील होना चाहिए। इन सब के लिए हमारी रहनुमाई व्यवस्था को अपने हित औऱ महत्वाकांक्षा को समूल नष्ट करना होगा। तभी समाज अपराध मुक्त बन कर उन्नति कर सकता है।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896