जीना भारत में है अब आसान कहाँ
पहले जैसी चेहरों पर मुस्कान कहाँ ।
बदला जब परिवेश वही इंसान कहाँ ।।
लोकतन्त्र में जात पात का विष पीकर।
जीना भारत मे है अब आसान कहाँ ।।
लूट गया है फिर कोई उसकी इज्जत ।
नेताओं का जनता पर है ध्यान कहाँ ।।
भूंख मौत तक ले आती जब इंसा को ।
बच पाता है उसमें तब ईमान कहाँ ।।
भा जाता है जिसको पिजरे का जीवन ।
उस तोते के हिस्से में सम्मान कहाँ ।।
दिल की खबरें अक्सर उसको मिलती हैं
दर्दो गम से वो मेरे अनजान कहाँ ।
मान गया होगा वह गैरों की बातें ।
उसको अब तक सच की है पहचान कहाँ ।
तोड़ दिया जब दिल मेरा तुमने हंसकर ।
बाकी मुझमें अब कोई अरमान कहाँ ।।
–नवीन मणि त्रिपाठी