गीतिका/ग़ज़ल

जीना भारत में है अब आसान कहाँ

पहले जैसी चेहरों पर मुस्कान कहाँ ।
बदला जब परिवेश वही इंसान कहाँ ।।

लोकतन्त्र में जात पात का विष पीकर।
जीना भारत मे है अब आसान कहाँ ।।

लूट गया है फिर कोई उसकी इज्जत ।
नेताओं का जनता पर है ध्यान कहाँ ।।

भूंख मौत तक ले आती जब इंसा को ।
बच पाता है उसमें तब ईमान कहाँ ।।

भा जाता है जिसको पिजरे का जीवन ।
उस तोते के हिस्से में सम्मान कहाँ ।।

दिल की खबरें अक्सर उसको मिलती हैं
दर्दो गम से वो मेरे अनजान कहाँ ।

मान गया होगा वह गैरों की बातें ।
उसको अब तक सच की है पहचान कहाँ ।

तोड़ दिया जब दिल मेरा तुमने हंसकर ।
बाकी मुझमें अब कोई अरमान कहाँ ।।

–नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]