ग़ज़ल
इस चमन में शजर चन्द ऐसे रहे ।
जो सदा ज़ुल्म तूफ़ाँ का सहते रहे।।
घर हमारा रकीबों ने लूटा बहुत ।
और वे आईने में सँवरते रहे ।।
था तबस्सुम का अंदाज ही इस तरह ।
लोग कूंचे से उनके निकलते रहे ।।
देखकर जुल्फ को होश क्यों खो दिया ।
आपके तो इरादे बहकते रहे ।।
दिल लगाने से पहले तेरे हुस्न को ।
जागकर रात भर हम भी पढ़ते रहे ।।
यह मुहब्बत नहीं और क्या थी सनम ।
लफ्ज़ खामोश थे बात करते रहे ।।
कैसे कह दूं कि मुझसे जुदा आप हैं ।
ख्वाब में आप तो रोज़ मिलते रहे ।।
कुछ तो साजिश मुहब्बत में थी आपकी ।
बेसबब आप क्यूँ मुझको छलते रहे ।।
खुदकुशी कर लूं हम ये है मुमकिन कहाँ ।
जिंदगी के लिए हम तरसते रहे ।।
मैं सजा लेता पलकों में तुमको मगर ।
इश्क में तुम भी चेहरे बदलते रहे ।।
कुछ शरारत लिए थीं वो अंगड़ाइयां ।
देखकर उम्र भर हम मचलते रहे ।।
कर गयी जो असर आपकी वह नजर ।
आज तक बेखुदी में टहलते रहे ।।
दो बदन जल उठे आग ऐसी लगी ।
मुद्दतों बाद हम भी सुलगते रहे ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी