कविता

एक मरता हुआ दर्द

कितनी दुःखद है स्थितियां,
हर कोई दौड़ रहा है यहाँ!
महज एक नोकरी को,
अनगिनत कतारे लगी है…
धक्का मुक्की, मारा मारी,
बड़ी मोटी फीस..
ऊपर से अगणित इम्तिहान
तरह तरह के सवाल
जिनसे कभी वास्ता ही न रहा !
सब पार करते करते
जब पहुचता है मंजिल के निकट!
तभी कोई स्वार्थ लोलुप ।
आ जाता है धमाक -से!!!!
सारी प्रक्रिया या तो रद्द या भ्रष्टाचार की गिरफ्त में!
एक बार तो टूट जाता है सपना।
समझ नही आता!
क्यों इतनी पेचीदा है चयन प्रक्रिया!
जब साधना है हित किसी का!
क्यों ???
एक उम्मीद दिखाई जाती है!!!
ऐसी उम्मीद-
जो पूरी होने में अनेकानेक बाधाएं है।
फिर भी इसी दौड़ में दौड़ रहा है हर एक नोजवान!
उम्मीद है कि –
गत बार न हुआ तो क्या हुआ!
इस बार सब अच्छा होगा।
इन्ही सब स्थितियों के बीच;
न जाने कब गुजर जाता है –
वक्त!!!!
जिम्मेदारियां भी उठाने लगती है सिर।
और हो जा है मरण एक युवा का!!!
उस युवा का जो एक जज्बा लिए हुए था!
जो कुछ कर गुजरने की
तम्मना में जीता था!
आखिर कौन है ??
इन सबका जिम्मेदार???
कब आएगा बदलाव???
परिवर्तन के इन्तजार में-
यौवन और जिम्मेदारी की वय संधि पर खड़ा !
एक मजबूर किंतु कुछ करने की तमन्ना रखने वाला युवा!
इसी आशा में कि अब समय बदलेगा!

 — हरीश “धाकड़”

हरीश कुमार धाकड़

गांव पोस्ट स्वरूपगंज, तहसील-छोटीसादड़ी, जिला-प्रतापगढ़ (राजस्थान)