कागज दिल
तुम्हारे प्यार में इश्क का नशा
जब छाने लगे
कागज़ दिल पर
तुम्हारा नाम आने लगे।
प्यार की गहराई से
हुस्न की परछाई तक
मेरे होठों पर
तेरा नाम आने लगे।
तुम्हारे प्यार का नशा
कुछ इस तरह से चढ़ा
तेरे प्यार में
मदहोश होने लगे।
तुम्हारे स्पर्श को
पूजा था मंदिर की तरह
इन यादों की नींव पर
मजार बनाने लगे।
चाहत थी हर साँस को
अर्पण कर दूँ तुम्हें
मिल न सकी तो
पराई बनाने लगे।
हमने चाहा था
दिलो जां से
लेकिन हवा कुछ ऐसी चली की
तुम्हे भूल जाने लगे।
रचनाकार- रंजन कुमार प्रसाद