“गीत”
छंद – मोदक (वार्णिक) शिल्प विधान –भगण ×4, मापनी 211 211 211 211
भाव लिखो जब आप सभी जन
मान गुमान विचार लियो मन
ठेस लगे न कलेश भरे जिय
सुंदर शब्द खिले रचना प्रिय॥
गागर सागर चातक नागर
पातरि देह सबे गुण आगर
सावध बोल हिया न लगे उठ
आपुहि आप पिया न चले रुठ॥
गौतम पाहुन आय गया घर
जाय न जातक भाव भरो वर
कामरि काँध रखो नहिं तापर
शोभत फूल सखा निज साखर॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी