कविता : चुनाव का मौसम
अब चुनाव नजदीक आने लगे हैं
नेताजी हमारे भी दिखने लगे हैं
नए खादी के कुर्ते सिलने लगे है
नेताजी गली गली सजने लगे हैं
कोहनी तक करबद्ध हैं अभी तो
और चरण स्पर्श भी करने लगे हैं
झूंठे वादे मीठी -मीठी बातें सुनो
भाषण में रस सभी घोलने लगे हैं
घोषणा पत्र नकली छपेंगे देखो
फिर प्रेसवार्ता के दौर करने लगे है
नल बिजली सड़क सारे दुरस्त हुए
लगा फिर अच्छे दिन आने लगे है
दल बदलू ताक में बैठे हैं देखिये
जिधर पद मिला उधर दौड़ने लगे है
मेरे देश की जनता किसको मत दे
झूँठ के साथ सब मत लेने लगे हैं
— कवि राजेश पुरोहित