कविता का उद्भव
कविता लिखना कब आसान है
भावनाओं का ज्वर उमड़ता है
तो कोई विचार जन्म लेता है
पर कोख में से निकलने से पहले
बहुत कुछ सहना भी तो पड़ता है।
शब्दों की जद्दोजहद का अंधेरा
चीरना पड़ता है सम्भल सम्भल
फिर भी कहाँ साथ देती है हमेशा
लय और गति, बँधे जो बिना नाज
और रच सकें पद्य में हरेक पल।
मात्रा का भार कम ज्यादा कहीं
तो कहीं छंद अलंकार छोड़ जाते
साथ भावों का और फिर से मायूस
कलम को और उदास हैं कर जाते।
काश कभी खुशी बिखरे पन्नों पर
यही प्रयास करना चाहता है मन
पर दायरे में कहीं मिलते नही पल
जो हर्षा दें मेरी कागज और कलम।
अश्कों में बार बार डुबोना पड़ता है
तब जाकर उकरती स्याही लफ्ज़ो की
बात कुछ शब्दों तक ही सीमित नही
बात तो यहाँ उठी है पूरी कविता की।
— सीमा भाटिया