कविता- ज़िन्दगी के बेनाम किस्से
कागज के पन्ने सी कोरी ज़िन्दगी,
रिश्तों में भीड़ है भरी,
इंसानियत मर रही है लोगो की,
सब मतलबी से हो रहे हैं,
अगर मर गयी इंसानियत,
जिंदा लाश से कैसी दोस्ती ,
जब तकलीफ में हो हम,
संग नही कोई हमारे,
काम पड़ने पर हो जाते है सभी अपने,
काम निकल जाने के बाद,
हमे पहचानते तक नही,
हर रिश्ता पैसे और शानोशौकत माग रहा है,
जिसके पास धन नही,
वो दुनिया के साथ चलने के काबिल नही,
अजीब है दुनिया की रीत भी,
कभी कोई पैसों से खुशियां खरीद सका है क्या,
जो लोग पैसे के पीछे भाग जाते हैं,
वो एक दिन खाली हाथ आते हैं,
बैग में नोटों की भरमार होगी,
साथ लेकर क्या आये थे,
दो गज जमीन नसीब होगी,
लोग कितने पैसे कमा ले,
मगर खायेंगे अन्न ही,
जब जायेगे दुनिया से,
तो संग चार लोग जायेगे,
मुनाफा कमाना छोड़कर रिश्तो में,
कुछ काम ऐसा कर जाइये,
रह जाओगे भीड़ में,
तन्हा ही खुद को पाओगे
— “उपासना पाण्डेय” आकांक्षा
आज़ाद नगर हरदोई(उत्तर प्रदेश)