राजनीति

राहुल का उपवास दलितों के साथ मजाक ?

जब से एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया है तब से दलितवाद की राजनीति ने अचानक से जोर पकड़ लिया है। सभी विरोधी दल एक साथ अब भाजपा व संघ पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाकर काफी तीव्रता के साथ मुखर हो रहे हैं तथा उन्हें दलितवाद की राजनीति के सहारे भाजपा को आगामी चुनावों में पराजित करने का सबसे आसान तरीका दिखलायी पड़ रहा है। सभी दल दलितवाद की राजनीति कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही विपक्षी दलों ने संसद सत्र के दौरान ही केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास शुरू कर दिया था। संसद परिसर में दलितों के मुददे को लेकर धरना दिया गया। फिर दलित उत्पीड़न व उन पर हो रहे अत्याचारों के नाम पर भारत बंद का आयोजन किया गया जिसमें एक बड़ी साजिश के तहत व सुनियोजित तरीके से हिंसा करा दी गयी, वह भी केवल भाजपा शासित राज्योें में।

इस दौरान सेकुलर मीडिया में जो बहसें आयोजित की गयीं उनमें दलित उत्पीड़न को लेकर भाजपा व संघ पर बेबुनियाद व झूठा दुष्प्रचार किया जाने लगा। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि आज संसद व विधानसभाओं में सबसे अधिक दलित व एससी-एसटी सांसद व विधायक बीजेपी के ही हैं। अभी 2019 के लोकसभा चुनाव बहुत दूर हैं। लेकिन उससे पहले अब भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती पेश होने जा रही है। मई में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं जहां 21 फीसदी दलित व कमजोर वर्गों के मतदाता हैं, जिन पर सभी दलों की निगाहें लगी हुई है। उसके बाद सबसे बड़ी परीक्षा की घड़ी राजस्थान, मप्र और छत्त्तीसगढ़ आदि हिंदी भाषी प्रांतों में होने जा रही है। राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि इन प्रांतों में सत्ता पर काबिज भाजपा सरकारों के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान दिखाई दे रहा है। इन राज्यों में हुए कई उपचुनावों में बीजेपी को पराजय का मुंह देखना पडा़ है। यही कारण है कि राहुल गांधी व संपूर्ण विपक्ष ने इस समय दलितवाद के नाम पर बीजेपी के खिलाफ जमकर हल्ला बोल दिया है।

उपचुनावों में पराजय के बाद विपक्ष में जिस प्रकार से एकता बनी है उससे बीजेपी नेतृत्व में चिंता के स्वर दिखाई पड़ रहे हैं तथा उससे निपटने की तैयारी भी की जा रही है। इसी भविष्य को दृष्टिगत रखते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पूरी ताकत के साथ भाजपा को उखाड़ फेंकने के लिए पसीना बहाना शुरू कर दिया है। राहुल गांधी ने दलित उत्पीड़न के खिलाफ राजघाट पर उपवास किया तथा कांग्रेसियों ने देशभर में उपवास रखा। राहुल गांधी के उपवास के दौरान कई मजेदार प्रसंग भी सामने आये हैं, जिससे वह मजाक के पात्र बन गये हैं।

राहुल गांधी के उपवास पर बैठने के पहले एक तस्वीर जारी हुई जिसमें कांग्रेस नेता अजय माकन, हारून युसूफ, अरविंदर सिंह लवली आदि छोले भटूरे खा रहे हैं। कांग्रेस नेता अरविंदर सिंह लवली ने इस तस्वीर के सही होने की बात स्वीकार कर ली है। यह तस्वीर जारी करने वाले बीजेपी नेता हरीश खुराना ने लिखा कि कांग्रेस के नेताओं ने लोगों को राजघाट पर बुलाया है। लेकिन खुद एक रेस्तरां में बैठकर छोले-भटूरे खा रहे हैं। क्या सही बेवकूफ बना रहे हैं! उसके बाद दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी इस बात को ट्विटर पर आगे बढ़ा दिया। अब यह भी खबर आ रही हैं कि जयपुर में भी कांग्रेसियों ने उपवास का मजाक बना दिया है तथा वहां से भी कांग्रेसियों की तस्वीरें जारी हुई हैं। अब यह मुददा कांग्रेस पार्टी को बैकफुट पर ले जाने वाला साबित हो रहा है।

वहीं दूसरी सबसे बड़ी बात यह हो गयी कि पंजाब में सिख दंगों के मास्टरमाइंड जगदीश टाइटलर व सज्जन कुमार कांग्रेस के मंच पर पहंुच गये। कांग्रेस को उन्हें भी मंच से उतार देना पड़ा, जिसके कारण भी कांग्रेस की छवि धूमिल तो हो ही चुकी है तथा उसका असली चरित्र जगजाहिर हो गया है। वैसे भी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जिस प्रकार की बयानबाजी जनता के बीच कर रहे हैं, जनमानस पर उनका कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखायी पड़ रहा है। यदि कर्नाटक में कांग्रेस अपना आखिरी किला किसी प्रकार से बचाने में सफल भी हो जाती है तो उसमें राहुल गांधी की कोई अपनी भूमिका नहीं होगी अपितु उसमें कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जो लिंगायत का कार्ड खेल दिया है उसकी बड़ी भूमिका होने जा रही है। खैर देखना यह है कि राहुल गांधी ने जो दलित उत्पीड़न के नाम पर उपवास किया है वह फिलहाल उन्हीं पर न भारी पड़ जाये।

राहुल गांघी के उपवास पर बीजेपी ने भी तीखा प्रहार किया है और कहा है कि राहुल गांधी ने अपने उपवास का उपहास किया है। उनके उपवास से केवल दलितों का मजाक बनाया गया है। अगर राहुल गांधी को दलितों व किसानों की इतनी ही चिंता हो रही है तो फिर उन्होंने कर्नाटक के दलितों व किसानों के हक में आवाज क्यों नहीं उठायी? यह बात सही साबित हो रही है कि अब कांग्रेस व विरोधी दलों के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है। विरोधी दलों के पास केवल एक ही काम रह गया है, वह है- देश के विकास में बाधा डालना। जनता के बीच और बहुसंख्यक हिंदू जनमानस में फूट डालकर वोट हासिल करना। अगर कांगे्रस व अन्य दलों ने दलितों व अन्य कमजोर वर्गो के हित में वास्तव में कुछ किया होता, तो आज समाज के इन वर्गों की यह दुर्दशा न हुई होती।

कांग्रेस व अन्य विरोधी दल दलितों व अन्य कमजोर वर्ग के लोगों को केवल दलित बनाकर रखते रहे। यदि कांग्रेस ने इस वर्ग का उत्पीड़न न किया होता तथा उनका विकास किया होता तो आज सपा व बसपा जैसे दलों का जन्म ही न हुआ होता। कांगे्रस ने केवल एक परिवार के नाम पर देश की सत्ता पर लम्बे समय तक राज किया। डा. आम्बेडकर व अन्य पिछड़े नेताओं के नाम पर देश में एक भी योजना नहीं चलायी। आज राहुल गांधी पूरी तरह से झूठ की बुनियाद के आधार पर दलितों के मसीहा बनकर खड़े हो गये हेै। आखिर राहुल गांधी केरल व बंगाल में जो अत्याचार हो रहे हैं, उन पर क्यों नहीं बोलते? वहां पर भी तो दलितों की हत्यायें हो रही हैं?

आज राहुल गांधी के उपवास से उनकी राजनीति पूरी तरह से बेनकाब हो चुकी है। जिस प्रकार की तस्वीरें सामने आयी हैं उससे पता चल रहा है कि राहल गांधी का दलित प्रेम उसी प्रकार से दिखावटी है, जिस प्रकार से वह मंदिरों में और मठों में जाकर अपने आप को हिंदू सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं। राहुल गांधी देश की राजनीति के लिए ही नहीं अपितु अपनी कांग्रेस पार्टी के लिए ही एक अभिशाप बनने जा रहे है। पता नहीं किसने इस समय उनको दलित प्रेमी बनने की सलाह दे डाली वह भी उपवास करके, जिसमें साबित हो गया कि राहुल गांधी का यह उपवास नहीं अपितु दलितों, किसानों व जिन सिखों का कत्लेआम कांग्रेसियों ने किया था यह उनका शर्मनाक मजाक था। राहुल गांधी का यह पाखंड बहुत दिनों तक नहीं चलने वाला।

राहुल गाँधी ने दलितों के लिए उपवास का जो नाटक रचा उसे उनके कांग्रेसियों ने ही फेल कर दिया। उपवास के पहले छोले-भटूरे खाकर यह साबित कर दिया कि वे दलितों के लिए क्या लड़ेंगे जो कुछ घंटे भूख से लड़ने को भी तैयार नहीं है। उधर भारतीय जनता पार्टी को कर्नाटक में यह कहने का अवसर मिल गया है कि दलितो, देखो! कांग्रेस आपका कितना उपहास करती है और आपको कितना झूठा सब्जबाग दिखा रही है। कांग्रेसियों की उपवास के नाम पर खाने-पीने की तस्वीरें दलित बहुल क्षेत्रों में खूब जमकर वायरल की जा रही हैं और की जायेंगी। राहुल गांधी उपवास के नाम पर उपहास के पात्र बन गये हैं। राहुल का दलित प्रेम व उपवास का नाटक कहीं उन्हीं के गले की हड्डी न बन जाये।

मृत्युंजय दीक्षित