“कुंडलिया”
सूखे तो काँटे हुए, हरे खड़े थे पेड़
अब किससे आशा रखूँ, फसल खा रहे मेंड़
फसल खा रहे मेंड़, भेंड़ बकरी कट जाती
काट रहा इंसान, जान कब जाकर आती
कह गौतम कविराय, भेंडिया नंगे भूखे
कैसा यह उद्यान, पेड़ माली सब सूखे॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
सूखे तो काँटे हुए, हरे खड़े थे पेड़
अब किससे आशा रखूँ, फसल खा रहे मेंड़
फसल खा रहे मेंड़, भेंड़ बकरी कट जाती
काट रहा इंसान, जान कब जाकर आती
कह गौतम कविराय, भेंडिया नंगे भूखे
कैसा यह उद्यान, पेड़ माली सब सूखे॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी