ए जिंदगी
शिकायतें तो बहुत हैं तुझसे ए जिंदगी
पर फिर भी तू अजीज है।
तेरे बिना हूं क्या मैं
शायद कुछ भी नहीं
या फिर एक सड़ी हुई सी लाश
जो मुशीबतों का पुलिंदा है।
पर तू भी तो कुछ कम नहीं
हर मोड़ पर कंटीले से तारों का
एक जंजाल बिछा रखा है।
जो कभी राहत की सांस लेता हूं
तो मुसकुराती हुए
अग्निकुंड सा बन जाती है तू।
पर हर जीत के बाद
मुझसे कहीं ज्यादा
मुझपे इतराती है तू।
कोयला हूं मैं
और मुझे हीरा बनाने को
हर दफा जिद्द पे अड़ जाती है तू।
सोचता हूं जो कभी-कभी
जानें क्या होगा मेरा
कहां तक जा पाऊंगा?
तभी सितारा बनाने को मुझे
मेरी लकीरों से लड़ जाती है तू।
दिये हैं तुने जख्म
तो मरहम भी तू ही बनीं है,
नसीब हुई जो थोड़ी खुशियां हैं
तू ही उसकी जननी है।
जो हूं, जहां हूं मैं
बस तेरी बदौलत हूं आज।
कभी काटों का सेज सजाकर
तो कभी मीठी सी दवा बनकर
खोलती रही है तू हरेक रिश्ते का राज।
तू आसान नहीं पर बेवफा भी नहीं
मेरे लिये तो है तू एक अधूरी,
एक अनसुनी सी साज।।
— मुकेश सिंह