अज्ञातवास
विकल हृदय तू क्यूँ उदास है ।
कुछ दिन का अज्ञातवास है ।
कुछ घंटो की अमा घनेरी ।
आयेगी प्रभात की फेरी ।
कुछ क्षण ठहर,धैर्य धारण कर ,
बात मान ले यह तू, मेरी ।
ऊषा के रक्तिम आँचल में ,
प्राची का स्वर्णिम उजास है ।
कुछ दिन ………………
पतझड़ आया है, जायेगा ।
फिर रितुराज नवल आयेगा।
मधुप मान ! फिर फूल खिलेंगे,
कली कली पर तू गायेगा !
अनावृत्त तरुओं के उर में,
पनप रहा एक नव विकास है ।
कुछ दिन का……………….
यह प्रतिकूल समय सह कंचन !
कभी न भारी कर तू निज मन !
तेरा मोल जौहरी जाने,
क्या जानें यह साधारण जन ?
वो ही तेरा मोल करेगा
वृथा हृदय करता निराश है ।
कुछ दिन…………………..
समय चक्र अनवरत चलेगा ।
सुबह का उदय, शाम ढलेगा।
जहाँ आज निर्जन कानन है,
कल कोई पुरधाम पलेगा ।
वहाँ बसेंगे भूखे नंगे,
जहाँ महाजन का निवास है ।
कुछ दिन का…………….
. . …© डॉ दिवाकर दत्त त्रिपाठी