वंदन बन नमन करे
चंदन बन वंदन करें
देश की माटी हम,
नित नित तुझे नमन करे ।।
पर्वत पठार
कल-कल छल-छल
बहती अविरल धारा
चाहें घनघोर घटाएं आयें
या कोहरा बन धूँध सा,
एक बॉदल छाये
तब भी श्वेत चाँदनी हम कहलायें ।।
तपन वीरों की
तप कर हम
बन शीत-शीतल
एक ठण्ड़क बने
क्यूँ …न हम
नव कुंदन चमक बना दें ।।
बिखरा-बिखरा,
पर बिछड़ा न हो
मिलों और मिलाओ
समेट कर समेट लो
झुमती खुशहाली लाओं
नया सा पैगाम बनाओं ।
गम न करो…
विनम्र सदा हीं बने रहों
इस धरा पर आये
निर्मित नव निर्माण..कर
नव विचार स्थापित करों
भेदभाव,,ऊँच-नीच..
भावों के भाव से परे
ऐसे हम आधार बनाये
ऑसमा तक पंख फैलाओं ।।
पकड़ सच की
राहें सत्य की
खुशहाली वो
हर अंबर पर छाये
हर कदमों की आन-बान-शान हो
हमारा-आपका……
हम सबका ऐसा ये ज़हान हो ।
जय जय भारत देश हो ।।
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जय हिंद ।।
— उमा मेहता त्रिवेदी