कविता – दे कोई दुहाई
नयनों की पुकार है
उस आंख वाले को
जो नासमझ बना है
जो निशब्द आगे बढ़ा है।
नजर ना आया जिसे
नयनों का गर्म नीर
नजरअंदाज किया जिसने
चोट खाती हुई पीर।
वेदना के क्षण भूला
आंखों का सपना टूटा
ढलती शाम सा जीवन में
अंधेरों में एक पुष्प खिला।
दे कोई उसे दुहाई
कोई तो एहसास जगे
पायल की झनकार सुने वो
जीवन में श्रृंगार भरे।