“पगली” कहीं की..
अक्सर कुछ शब्द उन्हीं शब्दों से जुड़ी बात और उन्हीं बातो से जुड़े लोग मात्र हँसी के पात्र बनकर रह जाते है उनको लगता वो सर्वोपरि है ।
अभी हाल ही कि बात लीजिये एक सहाब के घर विवाह समारोह मे जाने का अवसर मिला.. मेल जोल,मिलना-मिलाना के साथ हँसी-ठिठोली का खुशनुमा माहौल जो सभी को लुभाता और प्रसन्नचित्त करता नजर आ रहा था,ये मैं खुद अपने मन से नही कह रही हूँ ये तो उन सभी के मुस्कुराते चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी ..इसी बीच गुंजता,चुभता सा शब्द..
ओय !! पगली अपनी प्लेट तो ठीक से पकड़ अरे पगली कही की तुझे तो कुछ भी नही आता पूरी पगली हे पगली तु तो….आव-ताव न देखते हुऐ स्वर सुनाई दिया कह गयी ..
चारों और जमा भीड़ कोई अपना-सा,तो अनेक पराये भी वहाँ उस वक्त मौजुद थे..हाँ..ना ! वहीं पर । एक दम सन्ननन चारों तरफ सन्नाटा… ओह ! सभी उस समय उसी महिला की ओर अपनी अपनी निगाह केन्द्रीत किये हुए थोड़ी सी हलचलों के बीच शुरू हो गई कानाफुसी देखो ना बहनजी को बिल्कुल भी सलीका नही बात करने और कहने का… ओह ! नो ! ये कैसा तरीका अपनाया खुद की ही बेटी से इस तरह बात करने का वो भी जमा भीड़ में-तौबा-तौबा I don’t lik , ,OMG, vbed जी हाँ..यही कहते सुनते भी है हम-आप और बन जाते है अच्छे खासे हँसी के पात्र
पर,,कभी सोचा ये शब्द जिसके लिए आप उपयोग कर रहे हो उस पर आपकी इन बेमतलब सीदिल को चूभती बातो का क्या असर पड़ता है उसे कितना आघात पहूँचायेगी ये अनजाने में कही गई दिल को काँटों के समान चुभती ये बात… नही पता ना..सोचो पलट कर वो भी कह सकती है ना ‘तु भी पगली’..कही की ह़ो गयी ना तसल्ली बडे बनकर खराबी कैसा लगा ….?? आया मजा ..!!😊
न तो आप इस शब्द का उपयोग करे नहीं ओरों को करने दे ।ताकि आप कभी हँसी या बुराई का प्रतिक बनोगे ही नही वरना एक दिन ऐसा आयेगा कि सभी आपसे बाते न करने साथ ही दूर भागते नजर आयेगे क्योंकि उन्हें डर लगा रहेगा कि कही हमें भी ना फिर कह बैठे…. “पगली कही की”…
हँसी मानो रूकने का नाम नही ले रही उपर से मेरी नन्हीं भतीजी (सोमी)बार-बार वही शब्द ठहाकों के साथ बोले जा रही है… क्या यार भूवा आप भी ना….? दोनों एक साथ एक बार फिर जौर से खिलखिलाकर चिल्लापड़े…ओय!!😊 “पगली कही की”…..।
पुरा घर पहली बार हँसी के ठहाकों से गुंज ऊँठा ।
— उमा मेहता त्रिवेदी