कवितापद्य साहित्य

वक्त की सीख –

आज वक्त है शहनाई का
शहनाई बजा लीजिये |

आज वक्त है विदाई का
आँसू बहा लीजिये |

आज वक्त है जीने का
आशीर्वाद दीजिए |

आज वक्त है खुशी का
आप भी शामिल हो लीजिये |

आज वक्त है लड़ाई का
कफ़न बांध लीजिये |

आज वक्त है अंतिम सफर का
थोड़ा कंधा तो दीजिए |

आज वक्त है दुःख का
थोड़ा सा बाँट लीजिये |

आज वक्त है तुम्हारा
तो हमें ना भूलिए |

आज वक्त है बदल रहा
भरोसा ना कीजिये |

वक्त की धूप-छाँव में
हमें ना तौलिए |

वक्त ही है बलवान
स्वयं पर गुमान ना कीजिये |

आज है तुम्हारा तो
कल होगा हमारा |

यही है वक्त की तकरार
मान लीजिये ||
–००–
||सविता मिश्रा ‘अक्षजा’||
२०/११/८९

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|