झूठ का बोलबाला है
आपके यदि एक भी दुश्मन नहीं हैं तो आप दिल जीतने में माहिर नहीं बल्कि झूठ बोलने में माहिर हैं ! क्युकिं झूठ पर बनी दुनिया को सच की हथोडी से मारना, बेहद मुश्किल काम है ! सच को सामने लाने की कोशिश में कई लोगों को नाराज़ हो जाते हैं, मैं नहीं चाहती कि जिस झूठ और अंधविश्वास पर आप और मैं जी रहे हैं वह सारी उम्र रहे, सच को अपनाना और जानना बेहद सुकून भरा होता है ! सिर्फ मेरे अकेले की कोशिश से कुछ नहीं होगा, सच कडवा होता है जो आपके झूठ पर बनी सोच पर कसकर वार करता है और इंसान बेकाबू, मेरे साथ भी होता है कि अब तक मैं झूठ के साये में थी, लेकिन अब लोगों तक बात पहुचानी होगी उन्हें बताना होगा कि वह अंधेरे में हैं और जहा बात नेता और राजनीति की आती है फ़िर तो ऐसा माहौल बन जाता है जैसे इनके परिवार का कोई कडवा सच उगल दिया गया हो !
क्या आप सच को सामने लाकर बदलाव लाने की कोशिश नहीं कर सकते ! हर बात पर राजनीति जरुरी है, आप इतने कमज़ोर हैं कि सच सामने आया और मानसिक संतुलन ही बिगड गया, हर विषय और वस्तु को लेकर !
कोलम्बस हो या गैलीलियो सभी को पागल समझा गया, उन्होंने सच खोजा और लोगों के सामने रखा लेकिन वर्षों पुरानी धारणा और पथरीले विश्वास को एक झटके में बदलने का अंजाम यह था कि उनकी जान पर बन आयी थी, उन्हें उन्हीं के साथियों और शहर के लोगों ने मारने का विचार बना लिया था! जानते हैं क्यों क्युकिं उन्होंने सच का आइना दिखाया, देर सवेर से ही सही लेकिन आज हम भी कहते हैं कि दुनिया गोल है ! दुनिया गोल है इसकी गणित और खोज कोलम्बस ने की, जिन्होंने बताया कि महज़ तीन महीनों में हम ये दूरी तय कर लेंगे और उसी जगह वापिस पहुँच जायेगे! किसी ने नहीं मना और उन्हें पागल करार दे दिया गया फिर भी उन्होंने खोज जारी रखी और साबित कर दिखाया कि दुनिया गोल है! ऐसा ही गैलीलियो के साथ हुआ क्युकी उन्होंने बोला कि सूरज पृथ्वी के चक्कर नहीं लगाता बल्कि पृथ्वी, सूरज के चक्कर लगाती है! बस फिर क्या था, फरमान जारी कि इस बकवास के लिए या तो गैलीलियो माफ़ी मांगे या फिर मौत! तब उन्होंने बोला- ठीक है में माफ़ी मांग लेता हूँ, लिखकर देता हूँ कि मैं पागल हूँ पर इससे सच नहीं बदल जाएगा कि पृथ्वी, सूरज के चक्कर लगाती है और आज दुनिया ये सच स्वीकार करती है, देर से ही सही सच सामने आ गया !
एक बार की बात है जब , भरा हुआ था अकबर का दरबार, बीरबल भी थे अन्य दरबारियों के साथ। अकबर ने पूछा एक सवाल, जिससे दरबारियों का हो गया बुरा हाल। अकबर ने पूछा-‘सच और झूठ में होता है कितना अंतर, दो तीन या चार शब्दों में बताओ उत्तर। सवाल सुनकर सभी दरबारियों की हो गई बोलती बंद, यूँ तो सभी बनते थे बड़े अक्लमंद। अकबर ने देखा फिर बीरबल की ओर, बीरबल प्रश्न के बारे में ही कर रहे थे गौर। अकबर ने कहा-‘बीरबल तुम बताओ, मेरे प्रश्न का जवाब सुझाओ।’
बीरबल ने कहा-‘महाराज! आपके प्रश्न का है उत्तर, सच और झूठ में होता है चार उँगलियों का अंतर।’ अकबर और दरबारियों को बात समझ में नहीं आई, अकबर ने कहा-‘बीरबल जरा खुलकर समझाओगे कि नहीं।’ बीरबल ने दिया उत्तर,-‘श्रीमान आँखें कान से चार उँगलियाँ तो होती हैं दूर। कान से सुनी बात होती है झूठ और आँखों देखी बात होती है सच।’
इस तरह ना जाने कितने उदाहरण हमारे सामने हों लेकिन हम सच को अपनाने की हिम्मत नहीं कर पाते क्युकी सच का साथ हमें भारी लगता है,दुश्मन अलग बन जाते हैं लेकिन अंतता जीत सत्य की ही होती है , देर से ही सही !