साथ हर पल दिया पर निभा तू नहीं
साथ हर पल दिया पर निभा तू नहीं
दर्द में बन चिरागे जला तू नही
कोशिशें की कई मर्तबा रोज पर
डाल सा नर्म होकर झुका तू नही
आँधियाँ चल रही नफरतों की यहाँ
प्रेम दिल में जगे वो खुदा तू नही
बादलों ने सुनाया मधुर राग जब
नेह की बारिशों में पिला तू नही
खोल ली आज सारी गिरह द्वेष की
चाह कर भी कभी हमनवा तू नही
जख्म जो देह को अब तलक है मिले
घाव हो ठीक पर वो दवा तू नही
जिस्म को भस्म कर दे सदा के लिए
उस विरह अग्नि में क्यों तपा तू नही
गजब
Nice