अनदेखी दीवारें
दीवारें कोई दिखती सी
कुछ अनदेखी
कोई रीति रिवाजों की
तो कभी अपने ही मन की
मकानों की दीवारें तो
हिफाज़त करती है
मगर रस्मों की दीवारें तो हिफाज़त के
नाम पर पंख ही काट देती है
ज़िस्म के साथ, मन के भी
मन जब उड़ान भरना चाहे
कभी घुंघरू बन कर
कभी पायल बनकर, रस्में,
पैरों में जंजीर बन जाएं
कुछ दीवारें दिखती तो नही
मगर होती है, जो बांधती है
मन को, ज़िस्म को…
— सुमन
बहुत सुंदर
धन्यवाद…🙏😇