ये कैसा इत्तफ़ाक
कैनवास पर रंगों को सजाने चाहती हूं, मगर रंग नही सजते
अब ये कैसा इत्तफाक है तेरा आना, और रंगों का सज जाना
कई बार कुछ लिखना चाहती हूँ, पर लिख नही पाती
मगर ये हुआ है कई बार कि,
अब ये कैसा इत्तफाक है तेरा आना, और रंगों का सज जाना
कई बार कुछ लिखना चाहती हूँ, पर लिख नही पाती
मगर ये हुआ है कई बार कि,
तेरा आना और खोये लफ़्ज़ों का मिल जाना…
कोशिश है तुझे भूल जाने की,
कोशिश है तुझे भूल जाने की,
मगर ये कैसी अज़ीब सी बात है कि,
तुझे भुलाने की कोशिश,
मुझे खुद से ही दूर कर जाती है हर बार…….
— सुमन
बहुत सुंदर कविता है जय हो
धन्यवाद🙏😇