कविता

बेटियां

मोम की गुड़िया सी कोमल होती है बेटियां
माता पिता के दुलार में पलती है बेटियां
अनजान घर की बहू बनती तब भी बेटी का ही रूप होती है बेटियां
खुदा की सौगात ,जमा पूंजी का ब्याज सी होती है बेटियां
दिन का चैन और रातों की नीद भी उड जाती है
जब जवान हो जाती है बेटियां
सन्तति तो अपनी, फिर भी पराया धन होती है बेटियां
रोते है मात पिता जब डोली में बैठती है बेटियां

क्यों रोते है लोग ,जब जन्म लेती है बेटियां
बीज ही नहीं बचेगा,तो फसल कहां से काटोगे
न जन्मी बेटियां तो,कन्यादान का धर्म कैसे निभाओगे
नवरात्र में कन्या पूजन के लिये कहां से लाओगे बेटियां
ईश्वरीय वरदान और सृष्टि की मूल होती है बेटियां
दिल कभी न दुखाना, फूल सी कोमल होती है बेटियां
मात पिता की परेशानी को जब भी सुनती है बेटियां
सेवा भाव के लिये दौड़ी दौड़ी चली आती है बेटियां
मात पिता के हृदय का टुकड़ा होती है बेटियां
दो घरों का नाम रोशन करती है बेटियां
बेटियाें का सुख भी वही कर पाते है
जिनके घरों में पैदा होती है प्यारी सुन्दर बेटियां ।।

कालिका  प्रसाद  सेमवाल

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171