कविता

खलती है बेटियां

बेटी से बनकर बहू जब
बांट देती है  परिवार को
तब खलती हैं बेटियां
आजादी के नाम पर
करती है मनमानी
लेती है आधुनिकता की आड
तब खलती हैं बेटियां
भाई के प्यार के बदले
जब मांगती है पिता से हक
तब खलती हैं बेटियां
ईश्वर का वरदान हो
घर की आन मान शान हो
फिर बेटो से क्यो तुलना करती हो
करती है जब ऐसा
तब खलती हैं बेटियां
लज्जा का गहना उतार
नग्नता को ओढ लेती है जब
तब खलती है बेटियां
बेटे तो वंश बढाते है
बेटियां सृजन करती है
फिर क्यो समझती
खुद को छोटा
सोचती है ऐसा जब
तब खलती हैं बेटियां
रजनी चतुर्वेदी

रजनी बिलगैयाँ

शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट कामर्स, गृहणी पति व्यवसायी है, तीन बेटियां एक बेटा, निवास : बीना, जिला सागर