ग़ज़ल
ज़िन्दगी है अगर और क्या चाहिए।
हौसला बा-हुनर और क्या चाहिए।।
डोर मजबूत हो प्यार विश्वास की।
आज दौरे-सफर और क्या चाहिए।।
आँधियों से गुज़ारिश थमें अब ज़रा।
हों सलामत शज़र और क्या चाहिए।।
सिर्फ़ तालीम लो इश्क़ औ फर्ज़ की।
दो शिफ़ा उम्र-भर और क्या चाहिए।।
ऐ ग़मे-ज़िन्दगी चूमकर भी तुझे।
मुस्करायें ‘अधर’ और क्या चाहिए।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’