जख्म गैरों के जाकर
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गजल : कुमार अरविन्द
गैर के जख्मो को हर रोज सुखाते रहिये |
अपने किरदार का किरदार निभाते रहिये |
राब्ता ही न रहा मुझसे तो शिकवा कैसा |
करके बर्बाद मुझे ज़श्न मनाते रहिये |
उनको फुर्सत ही कहां हाल सुनाने की पर |
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए |
कब कहा मैंने ज़रूरत नहीं मुझको तेरी |
ख़्वाब में आ के मुझे यूँ ही सताते रहिए |
कोई तो आपके नज़रों से ही घायल होगा |
आप नज़रों से यूँ ही तीर चलाते रहिए |
वो नज़ारें वो नजाकत वो अदाएं वो हँसी |
अपने ज़ज़्बात सभी दिल के सुनाते रहिये |
हाले ‘ अरविन्द नही पूछता है कोई गर |
जब मिले मौका नये दोस्त बनाते रहिये |
___________________कुमार अरविन्द