विचारों की प्रकृति
🌼..विचारों की प्रकृति..🌼
अनंत रूपी प्रकृति जब अठखेलियां लेती हुई
बलखाती हुई प्रत्यक्ष होती है,
तो वैराग्य मन कवि
निः स्वार्थ भाव से इन सब रूपों में
अपने आप को सारगर्भित कर लेता है।
वहीं स्वार्थपरक एवं पिद्दी आदम
तमाशबीन बनकर रह जाता है।
कवि के अनुसार प्रकृति के सारे
अन्तरंगों का हिसाब संस्कृत के
प्राचीन कवियों के खाते में मिलता है।
विश्लेषणात्मक दृष्टि से प्रकृति का
उल्लेख न सिर्फ उद्दीपन के लिए बल्कि
इसके ऐश्वर्य एवं विपुलता के आधार पर
किया गया है।☘☘