अपराध बोझ
एक के बाद एक प्रेस वाले रमेश बाबू के घर पहुंच रहे थे। पूरे क्षेत्र में जश्न का माहौल था। हो भी क्यों न बिटिया स्टेट टॉप जो की थी। इतनी बड़ी एचिवमैंट के बाद भी, ना जाने क्यों, रमेशबाबू के चेहरे पर बनावटी मुस्कान झलक रही थी।
अन्नपूर्णा से रहा नहीं गया और उसने पापा से पूछ ही दिया- “पापा आजतक आपने मुझे अपने प्यार से वंचित रखा। केवल औपचारिकता निभाते रहे। मैंने क्या बिगाड़ा है आपका? मेरी सफलता से क्यों खुश नहीं हैं आप? ”
रमेशबाबू उसे सीने से लगाते हुए बोले- ” बेटा तुम्हारी कोई गलती नहीं है। बल्कि तुम्हारी कामयाबी से बहुत खुश हूं किन्तु एक अपराध बोझ के कारण चाहकर भी अपनी खुशी का इजहार नहीं कर पा रहा हूँ। ”
अन्नपूर्णा ने रमेशबाबू के आँसू पोछे व कसम देकर अपराध के बारे में पूछा।
रमेशबाबू ने कहा-” बेटा जब तुम्हारी माँ चार महीने की गर्भवती थी तभी पता चल गया था कि गर्भ में बेटी है।
तब मैंने ‘फिर बेटी नही चाहिए’ कहके गर्भपात कराने को कहा किन्तु तुम्हारी माँ राजी नहीं हुई। जिसके बाद से हमलोगों ने उसकी देखभाल की बजाय उस पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि वह तुम्हें जन्म देकर सदा के लिए विदा हो गई और तुम्हें सब अपशकुन मानने लगे”। कहते हुए दोनों फूट- फूटकर रोने लगे।
— नवीन कुमार साह