गर आतिशे हिज़र में ये खुदी जली न होती
गर आतिशे हिज़र में ये खुदी जली न होती ।
तो ज़िन्दगी में ऐसी कभी रौशनी न होती ।
मै मान लेता मुझको तुम छोड़ कर गए हो,
दिल मे अगर तुम्हारी मौजूदगी न होती ।
मै सोचता हूँ अक्सर दुनिया मे फिर क्या होता,
गर जान लेने वाली ये आशिक़ी न होती ।
दुनिया के दर्दो गम से महफूज़ कैसे रहता,
दिल को नसीब गर ये दीवानगी न होती ।
मुझको हसीन इतनी लगती कभी न दुनिया,
आंखों में गर तुम्हारी सूरत बसी न होती ।
गर टूटते न ‘नीरज’ दुनिया में लोगों के दिल,
ये शेर फिर न होते ये शाइरी न होती ।