पुरानी पेंशन के हकदार
हाल ही में दिल्ली में रामलीला मैदान में पुरानी पेंशनवाली मांग को लेकर आयोजित की गयी रैली से सरकार को यह समझने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिये कि जब सरकार पांच साल के लिए विधायक, सांसद बने व्यक्ति को पेंशन देने को राजी है तो फिर पैंतीस वर्ष तक अपनी सेवा देने वाले एक कर्मचारी को सरकार किस तरह से उतार चढ़ाव भरे शेयर मार्किट पर आश्रित नयी पेंशन पर छोड़ सकती है। सरकार इस तरह से न केवल बाबा साहेब अंबेडकर के सविधान के समानता के अधिकार नियम का उल्लंघन कर रही है बल्कि अड़तालीस लाख कर्मचारियों की उपेक्षा करके कम से कम दो करोड़ लोगों को सीधे और पांच सात करोड़ लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से अपने विरोध के लिए तैयार कर रही है।
ऐसा नहीं है कि 2004 से 2014 तक की यूपीए की सरकार ने नूतन पेंशन योजना कर्मियों के लिए कोई संवेदना दिखाई हो बल्कि यह उस कार्यकाल में भी इसी प्रकार से चलती रही, मगर 2014 के बाद से भी पुरानी पेंशन के प्रति सरकारों का नजरिया नहीं बदला है। सरकार को चाहिए कि अपने सभी सांसद और विधायकों को भी या तो नयी पेंशन योजना के तहत लाये या फिर नये कर्मचारियों को भी पुरानी पेंशन दे।
— डाॅ द्विजेन्द्र, हरिपुरकलां, देहरादून