” —————————– हाथ कुछ भी आता नहीं ” !!
आँखें सदा सच ही कहें , झूठ इनको भाता नहीं !
झूँठी गढ़ी गाथा कभी , हाथ कुछ भी आता नहीं !!
सपने यहाँ टूटे कभी , नींदें नहीं अपनी हुई !
छूटा कभी हाथों सभी , तीर लग ही पाता नहीं !!
अपने कभी बरसे नहीं , सरसे नहीं अपने दिवस !
यादेँ अगर पलकें चढ़ी , पलपल खुशी लाता नहीं !!
बातें हुई बढ़चढ़ सदा , अपने यही कहते रहे !
दूजे रहे लगते भले , गहरा यहाँ नाता नहीं !!
नोटों भरी महफिल लुटी , बाबा कभी नेता दिखे !
चाहें नहीं खनखन वही , जिनके बही खाता नहीं !!
लूटे गये रौंदे गये , छूटे हाथ अरमां सभी !
वामा सहे दुखड़े कई , देखा सहा जाता नहीं !!
नीरद कहे दुनियाँ कभी , अपना चलन बदले नहीं !
दे के कसक हंसती रहे , काहे असर जाता नहीं !!