हिज़र की स्याह रातों में चरागे दिल जलाया कर
मुहब्बत को मुहब्बत के सलीके से निभाया कर ।
हिज़र की स्याह रातों में चरागे दिल जलाया कर ।
वो हर मंजर कि जिसमें तुझको तेरी मौत दिखती है,
उसी को ही तू अपने जीने का जरिया बनाया कर ।
मुहब्बत का फ़साना तो नहीं है चन्द रोजों का,
तू उसकी इंतजारी में उमर अपनी बिताया कर ।
हुआ क्या उसकी यादों से जो इकपल तू नहीं आज़ाद,
तू उसकी कैद को ही अब फलक अपना बनाया कर ।
मै लिखता हूँ उसे ‘नीरज’ जो मुझको पढ़ नहीं सकता,
सुने ना वो सुने तुझको तू उसको गुनगुनाया कर ।
नीरज निश्चल