कविता

कविता

कभी- कभी बहुत गहरे तक
चुभ जाती हैं तुम्हारी बातें
सहज-सरल सी बातें
विष बुझा बाण बन
बेध जाती हैं मेरा अंतर्मन

नही समझ पाती
उस वक़्त उन बातों का अभिप्राय
तुम्हारी सरलता या
मेरे रिसते घावों को
और कुरेदना
जिनके ऊपर
दिखावे की एक परत सी है

लेकिन अंदर से है उतना ही हरा
जितना कि जब ज़ख़्मी हुई थी
अप्रत्याशित ही
सम्भावनाओं से परे…

बहुत भोले हो
जानती हूँ
ये भी नहीं समझते
कि बेखयाली में कहीं तुम्हारी बातें
कल्पना के ठहरे पानी में
कंकड़ों की भाँति सच की तरंगे बना के
मेरी स्वार्गिक दुनिया की परिकल्पना को
एक क्षण में ही
नेस्तनाबूत कर देती हैं….
-सुमन शर्मा

सुमन शर्मा

नाम-सुमन शर्मा पता-554/1602,गली न0-8 पवनपुरी,आलमबाग, लखनऊ उत्तर प्रदेश। पिन न0-226005 सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें- शब्दगंगा, शब्द अनुराग सम्मान - शब्द गंगा सम्मान काव्य गौरव सम्मान Email- [email protected]

One thought on “कविता

  • कुमार अरविन्द

    वाहहहहहहह

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