बैंक और निजी क्षेत्र के पेंशनर्स के साथ अन्याय
बजट सत्र के दौरान लोकसभा में 4 फीसदी और राज्यसभा में 8 फीसदी काम हुआ. बजट सत्र के दौरान कुछ ज़रूरी विधेयक या तो पारित नहीं हो सके और जो विधेयक पारित हुए थे वे बिना चर्चा के ही पारित कर दिए गये. यदि विपक्षी सांसद शोरगुल करते हुए संसद का बहिष्कार भी कर दे तब भी सत्ता पक्ष के सांसदों ने तो हर बिल पर सार्थक चर्चा करनी थी उसके बाद ही बिल पारित होने थे. क्योंकि संसद में चर्चा करना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं. सांसद सत्ता पक्ष के हो या विपक्ष के उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होना चाहिए. संसद में जनहित के मुद्दों पर चर्चा नहीं होना बड़ा दुखद और शर्मनाक हैं. आज तक आयोग की सिफारिशों के आधार पर जनहित के कल्याण की जो योजनाएँ भी बनाई गयी है एवं जिस तरह से उनका क्रियान्वयन किया गया है वे सिर्फ़ सरकार द्वारा वोट बैंक को ध्यान में रखकर ही की गई हैं. सांसदों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए. संसद में रचनात्मक बहस होना आवश्यक हैं. हर बार संसद की कार्यवाही हंगामे और स्थगन की भेंट चढ़ती रही हैं. जिस प्रकार विपक्ष हर बार संसद का बहिष्कार करके संसद से सड़क पर आ जाता है उससे ऐसा लगता है कि विपक्ष को जनता के हितों की अपेक्षा अपनी पार्टी के हित महत्वपूर्ण हैं. बजट सत्र में लगभग 200 करोड़ रूपये खर्च हो गये. यह राशि करदाताओं की जेब से गयी हैं. संसद में बहस के दौरान ही सरकार की नीतियों की समीक्षा होती है. वित्त मंत्री जी द्वारा संसद में बजट प्रस्तुतिकरण के पश्चात उस पर सार्थक बहस होकर उसमें जनता के हित में आवश्यक सुधार होने चाहिए थे लेकिन सांसदों ने अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं किया.
हमारे देश में बुजुर्गों के योगदान को समाज और सरकार द्वारा स्वीकार किया गया हैं. पिछले एक दशक में बुजुर्गों की संख्या में लगभग 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई हैं. हमारे देश में लगभग छ: करोड़ ऐसे वरिष्ठ नागरिक है जो सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों से सेवानिवृत हुए है और जो पेंशन पर ही अपनी जीविका चलाते हैं. बुजुर्गों की समस्या की जड़ तक जाने का कोई भी प्रयास तक नहीं करता हैं. इन वरिष्ठ नागरिकों ने राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई हैं. देश का इनके ऊपर कर्ज़ हैं. इनमें से अधिकांश वरिष्ठ नागरिक कई सामाजिक एवं सेवा संस्थानों से जुड़े हुए है जहाँ ये अपनी निशुल्क सेवाएँ देते हैं. कई वरिष्ठ नागरिक नई पीढ़ी का निशुल्क मार्गदर्शन करते हैं.
वर्तमान में वरिष्ठ नागरिकों के लिए आयकर में छूट की सीमा 3 लाख रूपये है और 80 वर्ष से ऊपर के सुपर वरिष्ठ नागरिकों के लिए 5 लाख रूपये हैं. कुछ ऐसे देश है जहाँ पेंशन की आय पर आयकर नहीं लगता है वे देश है – पनामा, कास्टारिका, उरूग्वे, इक्वेडोर, बेलिज और मलेशिया. वैसे मानवीय आधार पर पेंशन पर आयकर लगना ही नहीं चाहिए. सिर्फ़ वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाने से सरकार की इन नागरिकों के प्रति जवाबदेही पूरी नहीं हो जाती हैं. सन् 2004 से सन् 2015-16 के बीच 12 वर्षो में उद्योग क्षेत्र को कारपोरेट टैक्स में लगभग 50 लाख करोड़ रूपये की छूट सरकार द्वारा दी गई. यदि इस राजस्व के एक अंश पर भी सरकार ध्यान देवे तो वरिष्ठ नागरिकों, पेंशनरों की समस्या का समाधान आसानी से हो सकता हैं. सरकार की इस सौतेलेपन की नीति के कारण ही देश में अमीरों और ग़रीबों की बीच की खाई बढ़ती ही जा रही हैं. कारपोरेट घरानों के कर्ज़ से बैंकों के एनपीए बढ़े है और बैंकों की सेहत खराब हुई हैं उसे सुधारने के लिए आम जनता के पैसो का इस्तेमाल होगा. इस आम जनता में वरिष्ठ नागरिक भी शामिल हैं. हमारे देश में रिटायर्ड विधायकों और सांसदों को जीवनभर पेंशन मिलती है और साथ में सारी शाही सुविधाएं भी मिलती हैं जबकि इनमें से लगभग 80 फीसदी रिटायर्ड विधायक और सांसद करोड़पति हैं. जब मोदी सरकार टैक्स चोरी पकड़ कर ज़्यादा लोगों को टैक्स के दायरे में ला रही है और आयकर संग्रह में वृद्धि हो रही है. यदि अब मोदी सरकार पेंशन को आयकर से मुक्त कर देती है तो इससे सरकारी खजाने पर कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ेगा.
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार ने मुद्रास्फीति में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय कर्मचारियों और केंद्र सरकार के पेंशनर्स को दिनांक 1 जनवरी, 2016 से ग्रेच्युटी की सीमा को रुपये 10 लाख से बढ़ाकर् रूपये 20 लाख (आयकर मुक्त) कर दी थी. किंतु केंद्र सरकार ने बैंकों एवं निजी क्षेत्र के कर्मचारियों और पेंशनर्स के साथ सौतेलेपन का व्यवहार करते हुए ग्रेच्युटी एक्ट में संशोधन पारित कर उन्हें यह बढ़ी हुई ग्रेच्युटी की सुविधा 29 मार्च, 2018 से लागू की. केंद्र सरकार के इस संशोधन से भविष्य में सेवा निवृत होने वाले कर्मचारी लाभान्वित होंगे लेकिन जो कर्मचारी 1 जनवरी, 2016 और 29 मार्च, 2018 के मध्य सेवा निवृत हुए है उन्हें वास्तविक आर्थिक नुकसान हुआ हैं. केंद्र सरकार का यह निर्णय संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार के खिलाफ हैं. सरकार के इस सौतेलेपन से बैंक एवं निजी क्षेत्र के वे पेंशनर्स जो की 1 जनवरी, 2016 और 29 मार्च, 2018 के मध्य सेवा निवृत हुए है उनको आर्थिक नुकसान तो हुआ ही है और वे निराश एवं हताश भी हो गये हैं.
महँगाई दिनों दिन बढ़ती जाती हैं. लेकिन पेंशन में बढ़ोतरी नहीं होती हैं. सेवानिवृति के समय जो पेंशन फ़िक्स हो जाती है वह ही राशि पेंशनर के जीवित रहने तक मिलती रहती हैं. बहुत से परिवार सिर्फ़ वरिष्ठ नागरिक की पेंशन और जमा राशि पर मिलने वाले ब्याज की राशि पर ही टीका रहता हैं. हमारे देश में कई छोटे-छोटे व्यापारियों की मासिक आय पेंशनधारी वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन से कई गुना अधिक है लेकिन वे आयकर नहीं भरते है क्योंकि वे अपना टर्नओवर कम बताते हैं.
ग्रेच्युटी भुगतान एक्ट, 1972 में साफ-साफ लिखा हुआ है कि `सेवानिवृत्ति के पश्चात कर्मचारी को सामाजिक सुरक्षा मिले. ग्रेच्युटी की सुविधा सेवा निवृत्त कर्मचारियों के लिए एक सामाजिक सुरक्षा हैं.` लगातार बढ़ती हुई मुद्रास्फीति और घटती हुई रूपये की कीमत के आधार पर देश की सभी ट्रेड यूनियन ने समय-समय पर ग्रेच्युटी में वृद्धि के लिए केद्र सरकार के सामने अपनी माँग रखी थी. इस कारण समय-समय पर ग्रेच्युटी की सीमा रूपये 1 लाख से रूपये 2.50 लाख, रूपये 2.50 लाख से रूपये 3.50 लाख और मई 2010 में रूपये 3.50 लाख से रूपये 10 लाख हो गयी थी और अब यह रूपये 10 लाख से बढ़कर रूपये 20 लाख हो गयी हैं.
लोकतंत्र में शासन की सारी व्यवस्था जनता के सामूहिक हित को ध्यान में रखकर की जाती हैं. लोकतंत्र में सरकार को लोक-कल्याणकारी सरकार कहा जाता हैं जो की सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करती हैं. सरकार को चाहिए कि वह संविधान मे दिए गये समानता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए ग्रेच्युटी भुगतान एक्ट 1972 में संशोधन करने के लिए एक बार पुन: संसद में सार्थक चर्चा एवं बहस करें जिससे कि बैंक एवं निजी क्षेत्र के कर्मचारियों, पेंशनर्स को रूपये 20 लाख (आयकर मुक्त) ग्रेच्युटी की सीमा दिनांक 1, जनवरी, 2016 से लागू हो सके. औद्योगीकरण और बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना, मेक इन इंडिया, बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटीज़ तक ही सरकार की सोच नहीं होनी चाहिए बल्कि हमारे देश के बुजुर्गों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाकर ही सरकार को विकास के पथ पर देश को आगे ले जाना चाहिए.
— दीपक गिरकर