कोयल का गीत
कोयल का गीत
भीषण उष्णता के बीच
सूरज के तेवर भी
जहाँ रोक न सके
कोयल की कूक
वह हर पल
अपना राग सुनाती
बिना रूके
बिना डरे
वह अपने घरोंदे में
खुश है
आम्र कुंज ही ठिकाना
वहीं से छेड़ती राग
गरम हवा के थपेड़ों में भी
रूकती नहीं उसकी वाणी
मीठे बोल ही फूटते
कंठ से उसके
सूरज भी जैसे शीश नवाता
और समेटता अपनी किरणों को
शायद उसके साहस के आगे
नतमस्तक होकर
रात के अंधकार में छुप जाता
फिर नई सुबह में
उसका गीत सुनने
आकर देता उसे संदेश
और करता इशारे
गाओ गीत गाओ गीत।।