कविता

कोयल का गीत

कोयल का गीत
भीषण उष्णता के बीच
सूरज के तेवर भी
जहाँ रोक न सके
कोयल की कूक
वह हर पल
अपना राग सुनाती
बिना रूके
बिना डरे
वह अपने घरोंदे में
खुश है
आम्र कुंज ही ठिकाना
वहीं से छेड़ती राग
गरम हवा के थपेड़ों में भी
रूकती नहीं उसकी वाणी
मीठे बोल ही फूटते
कंठ से उसके
सूरज भी जैसे शीश नवाता
और समेटता अपनी किरणों को
शायद उसके साहस के आगे
नतमस्तक होकर
रात के अंधकार में छुप जाता
फिर नई सुबह में
उसका गीत सुनने
आकर देता उसे संदेश
और करता इशारे
गाओ गीत गाओ गीत।।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009