कविता

कलम और तलवार

सभी सिपाही हैं लेकिन ,
 सब रखते हैं तलवार नहीं
कलम हाथ रखकर भी लड़ते
इससे है इनकार नहीं
बिना जोश के जंग लगेगी
वीरों की समशिरों में
बिना कलम के धार न होगी
रखवालों के तीरों में
सीमा पर जो जान हैं देते
नमन बहादुर वीरों का
मार कलम की झेल सकें ना
घाव सहें जो तीरों का
दोनों ही कर्तव्य निभाते
दोनों के हैं शस्त्र महान
जोश बढ़ाता एक तो दूजा
रक्षा करता सबकी जान

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “कलम और तलवार

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, क्या बात है! बहुत खूब-
    दोनों ही कर्तव्य निभाते
    दोनों के हैं शस्त्र महान
    जोश बढ़ाता एक तो दूजा
    रक्षा करता सबकी जान.
    बहुत सुंदर कविता. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

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