ग़ज़ल
मैं बर्बाद हूँ तो मुझे बर्बाद रहने दे।
मेरी छोड खुद को आबाद रहने दे।
जानता हूँ जमाना आगे है मुझसे।
आगे तू है तो मुझे तेरे बाद रहने दे।
अजनबी है फिर से पहचानते नहीं हैं।
दिल के किसी कोने में याद रहने दे।
इबादत पूजा उसकी कभी नहीं की।
तुझे पाना है तो फरियाद रहने दे।
सबके सुखन ओ गम अलग अलग हैं।
तू तो खुश रह मुझे नाशाद रहने दे।
आवारा हूँ जरा सा बेड़ियाँ मत डाल।
घुटन से मर न जाऊं आजाद रहने दे।
मैं खुद हूँ तो फिर उसके जैसा क्यों।
न मीर न गालिब ‘याद’ को याद रहने दे।
— यादवेन्दर आर्य याद
BAHUT KHOOB