कामवाली
मुझे याद है एक कामवाली
जो दर्द में भी
हमारा काम करती थी,
आपने दर्द छिपा कर
हमारा दर्द कम करती थी,
कौन समझता होगा उसका दर्द
जो मेम साहिब और साहिब बोलती
नहीं थकती थी !
कोई तो उसका दर्द देखे
जो औरो के दर्द पर
दवा लगती थी
क्या कसूर था उसका
बस गरीबी ही
वे भी तो इंसान है
जानवर तो नहीं
क्यों हम उससे गलत
व्यवहार करते है,
क्यों हम उसके बर्तन
अलग रखते है
वही तो है जो तुम्हारा घर
सवारती है !
उसके बच्चे बिना खाना
खाये क्यों न रहे जाये,
पर तुम्हारे बच्चे को
अच्छे से खाना खिलाती है!
क्या कभी सोचा है
अगर वह न हो तो
हम क्या करेंगे ,
कभी फुरसत मिले तो
जरूर सोचना
क्युकी फुरसत तो तुम्हारे
पास है
काम तो उसको ही करना है
ताजिन्दगी जीवन के सघर्ष में
वह हमेश मुस्क़ुरती है
चाहे गम कितने भी ,
क्यों न हो
क्युकी साहब मुस्कुरहट ही
उसका दर्द कम करती है
क्युकी वह नारी है
नारी का रूप
ही सघर्ष है !