“कुंडलिया”
गागर छलके री सखी, पनघट पानी प्यास
आतुर पाँव धरूँ कहाँ, लगी सजन से आस
लगी सजन से आस, पास कब उनके जाऊँ
उपसे श्रम कण बिन्दु, पसीना पलक दिखाऊँ
कह गौतम कविराय, आज भर लूँगी सागर
पकड़ प्यार की डोर, भरूँगी अपनी गागर॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी