“मुक्तक”
तुझे छोड़ न जाऊँ री सैयां न कर लफड़ा डोली में।
क्या रखा है इस झोली में जो नहीं तेरी ठिठोली में।
आज के दिन तूँ रोक ले आँसू नैन छुपा ले नैनों से-
दिल ही दिल की भाषा जाने क्या रखा है बोली में॥-1
“मुक्तक” 2122 2122 2122 2122
दर किनारे हो गए जब तुम किनारे खो गए थे
उस समय सोचा नहीं क्या तुम विचारे हो गए थे
चल पड़ी थी नाव रुक उठने लगी चौमुख हवाएं
छोड़ जाना था नहीं मुमकिन सहारे हो गए थे॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी