बेकारी
बेकारी के इस आलम में ,
क्या -क्या धन्धे होते है ।
धूप छाँव रहती है जीवन में ,
फ़िर भी अंधे होते है ।
यह समझ नही आता मानव को
झगडा कोई विकल्प नही ,
यह जीवन है कांटों भरा समुन्दर ,
चलना इस पर सहज नहीं ।
नाटकीयता के साथ जीने वालों ,
जीवन सिर्फ रंगमंच नही है ,
दुःख का दरिया पार करे जो उससे बडा कोई मनुष्य नहीँ है ।
— डा माधवी कुलश्रेष्ठ