ग़ज़ल
कफ़स में ख्वाब उसको आसमाँ का जब दिखा होगा ।
परिंदा रात भर बेशक बहुत रोता रहा होगा ।।
कई आहों को लेकर तब हजारों दिल जले होंगे ।
तुम्हारा ये दुपट्टा जब हवाओं में उड़ा होगा ।।
यकीं गर हो न तुमको तो मेरे घर देखना आके।
तुम्हरी इल्तिजा में घर का दरवाजा खुला होगा ।।
रकीबों से मिलन की बात मैंने पूछ ली उससे।
कहा उसने तुम्हारी आँख का धोका रहा होगा।।
बड़े खामोश लहजे में किया इनकार था जिसने ।
यकीनन वह हमारा हाल तुमसे पूछता होगा ।।
उठाओ रुख से मत पर्दा यहां आशिक मचलते हैं ।
तुम्हारे हुस्न का कोई निशाना बारहा होगा ।।
तबस्सुम आपका साहब हमारी जान लेता है ।
अदालत में कभी तो जुल्म पर कुछ फैसला होगा।।
चले आओ हमारी बज़्म में यादें बुलाती हैं ।
तुम्हारा मुन्तजिर भी आज शायद मैकदा होगा ।।
अगर है इश्क ये सच्चा तो फिर वो मान जायेगी ।
मुहब्बत में भला कैसे कोई शिकवा गिला होगा ।।
बड़ी आवारगी की हद से गुजरी है मेरी ख्वाहिश ।
तुझे कैसे बताऊं इश्क में क्या क्या हुआ होगा ।।
वो पीता छाछ को अब फूंककर कुछ दिन से है देखा।
मुझे लगता है शायद दूध से वह भी जला होगा ।।
किया था फैसला उसने जो बिककर जुल्म के हक़ में ।
खुदा की मार से यारों वही रोता ।मिला होगा ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी