अधूरा इश्क़
आरती अपने माँ – बाप की इकलोती बेटी थी , वह दिल्ली में करोल – बाग में एक बड़े से घर में रहते थे , वे लोग पंजाबी थे ! आरती दिखने में काफी सुन्दर थी, कद लम्बा , बाल लम्बे और आंखे नीली ! जो किसी – किसी की ही होती है , उम्र उसकी २३ साल थी ! आरती की माँ एक गृहिणी थी ,
और पिता जी का अपना बिज़नेस था ! उसके पिता जी की कमाई काफी अच्छी थी , इसलिए आरती को बचपन से कभी किसी चीज की कमी ही नहीं हुई , उसके हर सपने उसके माता – पिता पुरे करते थे , क्योकि आरती उनकी एक ही एक लड़की थी !
आरती श्याम लाल कॉलेज से बी. ए की पढ़ाई कर रही थी ! घर से कॉलेज वो बस से जाया करती थी , क्योकि अभी वो कार चलना सीख़ ही रही थी , हर रोज़ शाम को अपने पिता जी के साथ वो कार चलना सिखने जाती थी ! इसलिए अभी उसे कॉलेज बस से जाना होता था ! एक दिन आरती घर से कॉलेज जाने के लिए बस स्टैंड पर आई थी , उस दिन आरती को बस काफी देर से मिली, बस में काफी भीड़ थी ! बड़ी मुश्किल से कुछ दूरी पर जा कर , आरती को बस में सीट मिल गयी थी , और सीट पर बैठ कर वह कुछ पढ़ने लगी थी , तभी अचानक उसकी साथ वाली सीट पर आ कर एक लड़का बैठ गया , लम्बा कद , आंखे काली और चेहरे पर मुछे थी , और साथ में एक बैग था , शायद लैपटॉप था ! वे लड़का शाहदरा में ही जॉब करता था , लड़के का नाम फैज़ था , वे एक मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखता था ! उसका घर देव नगर में था ! आरती तो अपनी बुक पढ़ने में ही व्यस्त थी , तभी अचानक चलते – चलते बस ख़राब हो गयी थी ! और सब बस से नीचे उतर ने लगे , आरती ने भी बुक अपने बैग में डाली और बस से उतर गयी , और फैज़ भी ,
बस ऐसी जगह ख़राब हुई थी , जहा दूर – दूर तक कोई बस स्टैंड नहीं था ! इसलिए लोग काफी परेशान हो रहे थे , फैज और आरती दोनों को लेट हो रहा था , दोनों ऑटो रोकते – रोकते थक गए थे , पर कोई ऑटो रुकना ही नहीं चाहा रहा था , बड़ी मुश्किल से एक ऑटो वाला उनके सामने आ कर रुक , आरती और फैज़ दोनों उस ऑटो वाले के पास गए , फैज़ अभी कुछ पूछता , ऑटो वाले से उससे पहले ही आरती ने ऑटो वाले से पूछ लिया
“भाई क्या आप श्याम लाल कॉलेज चलेंगे ”
इतने में फैज़ भी वहाँ आ गया और ऑटो वाले से पूछने लगा ” क्या आप शाहदरा चलेंगे !
ऑटो वाले ने कहा आप दोनों को एक ही जगह जाना है , क्यों न आप दोनों शेयर कर ले !
ऑटो वाले की बात सुनकर दोनों ने सही समझा , क्योकि इससे दोनों के पैसे भी आधे लगेंगे !
दोनों ऑटो में बैठ गये, और ऑटो चलने लगा !
आरती कुछ डरी हुई थी , क्योकि इस तरह से वह पहली बार ऑटो में बैठी थी , आरती पूरे रास्ते किताब खोल कर पड़ती रही , और फैज़ अपने फ़ोन पर गाने सुनता रहा , दोनों की मज़िल कब आ गयी , उन्हें पता ही नहीं लगा , और दोनों अपने – अपने रास्ते चले गए !
कुछ समय तक रोज़ दोनों एक दूसरे को ऐसे ही एक बस , एक बस स्टैंड पर देखते रहे , और एक दूसरे को स्माइल देते रहे , ये स्माइल प्यार में कब बदल गयी उन दोनों को खुद भी पता नहीं चला , आज करीबन उन लोगो को मिले १५ दिन हो गये थे , पर दोनों को अभी तक एक दूसरे का नाम भी पता नहीं था , आज तो फैज़ घर से ही सोच कर आया था , कि आज इस बात को कुछ आगे बढ़ना पड़ेगा , बहुत हो गया , ये दूर – दूर से स्माइल !
फैज़ रोज़ की तरह , आज भी उसी समय पर घर से निकला , और उस समय की बस में जा बैठा , अभी बस को चलने में वक़्त था , पर न जाने आज फैज़ किन खयालो में खोया हुआ था , कि उसको यह भी मालूम नहीं चला कि कब बस चलने लगी ! अब तो फैज़ की नज़रे बस आरती को ही देखना चाहती थी , अचानक बस एक स्टैंड पर रुकी और फैज़ खिड़की से बाहर देखने लगा था , यह वही स्टैंड था , जहा से आरती बस में चढ़ती थी ! पर आज आरती बस में नहीं आई , यह देख कर फैज़ का मन थोड़ा उदास हो गया ,क्योकि आज सुबह से ही फैज़ आरती का इंतज़ार कर रहा था ! इसलिए आरती के न आने से फैज़ का दिल पूरी तरह उदास हो गया ! यहाँ तक की ऑफिस पहुचने के बाद भी फैज़ मिया का काम में मन नहीं लग रहा था ! वे बस फाइल पर फाइल देखते रहे , देख क्या रहे थे , उन्हें खुद को भी मालूम न था ! बस किसी तरह समय बिता रहे थे !
आज पूरा दिन फैज़ मिया का कैसे निकल गया , शायद उन्हें १ – १ मिनट याद है , क्योकि का दिन फैज़ ने समय देख – देख कर ही बिताया था !
शाम के ५ बज गये थे , फैज़ ऑफिस से घर जाने के लिए बस का इंतज़ार करने लगा था , बस आज थोड़े समय से पहले ही आ गई थी ! , बस में चढ़ते ही फैज़ को सीट मिल गयी और वे बस की पीछे वाली सीट पर ही बैठ गया , पर शायद आज आरती और उसका मिलना लिखा था , तभी फैज़ को पीछे से किसी ने बुलया , कोई पीछे से सिर्फ ये कहे रहा था , कि ” सुनिए जरा ” एक बार के लिए तो फैज़ ने अनसुना कर दिया, क्योंकि सुनिए जरा तो कोई भी किसी को बुला सकता था , पर जब २ बार आवाज आयी , तब वे पीछे मूड कर देखता है , कि आरती उसे बुला रही थी ! क्योकि अभी तक इन दोनों को एक दसरे का नाम तो पता नहीं था , इसलिए आरती फैज़ को इस तरह ही बुला रही थी ! अब तो फैज़ की ख़ुशी का ठिकना नहीं था , वह तो मानो हवा में उड़ रहा हो , फ़ैज़ अपनी सीट से खड़ा होकर आरती के पास चला गया , क्योकि आरती के पास वाली सीट बिलकुल खाली थी , फैज़ आरती के पास जा बैठ और पूछने लग आरती से कि
” आज आप कहाँ सुबह आप कहा थी , आई नहीं आप बस में आज”
” वो मैं आज लेट हो गयी थी ”
” अच्छा जी , कैसी है , आप ?
” मैं ठीक हु , आप बातये ?
” मैं भी अच्छा हु , अगर आप बुरा न मानने तो क्या मैं आपसे आपका नाम जान सकता हु क्या ?
” हहहहह ( थोड़ा हस कर ) जी बिलकुल , इसमें कोई बड़ी बात कोई है , जी मेरा नाम आरती है और आपका ?
” मेरा नाम फैज़ है ”
” अच्छा नाम है आपका फैज़ ”
” जी शुक्रिया , आपका भी ”
बातो – बातो में आरती का घर आ गया , और वो बस से उतरने लगी ही थी , कि पीछे से फैज़ ने आरती को अलविदा कहा , आरती ने भी मुस्कुरा कर अलविदा कहा , और बस से चली गई !
इस तरह ही दोनों का मेल – जोल आगे बढ़ने लगा , और दोनों को एक दूसरे से मोहोबत कब हो गयी पता ही न चला , आज दोनों अलग – अलग नहीं एक ही है , दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था , बस घर वालो से बात करना जरुरी था , पर दोनों ही घर में बात करने से डरते थे , क्योकि दोनों का धर्म अलग – लग था , इसलिए फैज़ और आरती को डर था , कि कही उनके घर वाले मना न कर दे , पर आज नहीं तो कल बात करनी ही थी , इसलिए उन दोनों ने फैसला किया , कि दोनों आज रात को अपने – अपने घर वालो को सब कुछ बता देंगे , आगे जो भी होगा देखा जाये गा !
आरती अपने घर जाते – जाते यही सोच रही थी , कि वह ये सब कैसे अपने माँ – पिताजी को बतएगी , , डर तो उसको बहुत लग रहा था , पर आज नहीं तो कल उसको यह बात तो अपने घर वालो को बतानी ही पड़ेगी ! वे घर एक अंदर गई , उसी समय उसकी माँ ने उसको देखते ही कहा
” अच्छा है , तुम आ गयी हम तुम्हे ही याद कर रहे थे ! चलो हाथ – मुँह साफ़ कर लो , खाना खालो !
आरती ने कहा ” ठीक है मम्मी मैं १० मिनट में आती हु ”
आरती ने अपना बैग रखा और हाथ – मुँह साफ करने चली गई ! और वह सोचती रही कि वो अपने घर वालो को फैज़ के बारे कैसे बातये, क्योकि आरती अपने पापा से काफी डरती थी , उसे पता था , कि अगर ये बात उसने अपने पिता जी को बता दी तो , वे आरती का घर से निकलना बंद कर देगे !
यही सब सोच कर आरती ने सोच , आज बात नहीं करती हु , थोड़ रुक जाती हु , पहले मम्मी को माना लेती हु , फिर मम्मी और मैं पापा को मिलकर माना लेगे ! पर शायद भगवान की कुछ और ही मर्जी थी , अचनाक रात को आरती के पिताजी की तबीयत ज्यादा ख़राब होने लगी, आरती को कुछ समझ नहीं आया कि वे क्या करे , आरती की मम्मी ने आपने भाई और आरती के मामा को फ़ोन किया , और सब कुछ बता दिया , कुछ ही देर बाद आरती के मामा घर आते है , और जल्दी से आरती के पापा को पास के अस्पताल ले जाते है ! जहाँ उन्होंने आखरी सॉस ली !
यह सब देखकर आरती और उसकी मम्मी तेज – तेज रोने लगती है , क्योकि आरती के घर में कामने वाले सिर्फ आरती के पिता ही थे !
आरती की मम्मी आरती से बोलती है कि
” बेटा आज हम अकेले हो गए है , आज हमारे घर की नीव हिल गयी है , अब उनके बिना हम कैसे रहेंगे ”
पर आरती बोलती है कि
” मम्मी आप चुप हो जाये , आपका कोई बेटा नहीं है , तो क्या हुआ , मैं बनू गई , इस घर की नीव , मैं रखूगी आपका और इस घर का ख्याल ”
ये सब सुन कर आरती की मम्मी और तेज – तेज रोने लगती है!
आज पुरे ४ साल हो गये , न आरती ने शादी की , और न ही उसदिन के बाद उसने कभी फैज़ से कोई रिश्ता नहीं रखा ! क्योकि आरती को पता था , अगर वह फैज़ से कुछ कुछ कहेगी तो , शायद वो पूरी तरह से टूट जाएग ! इसलिए आरती ने अपने प्यार को खामोशियो में ही दफ़ना दिया था !
अब तो आरती सिर्फ अपने पापा का बिज़नेस देखती है और अपनी मम्मी का और अपने घर का ख्याल रखती है!