किसके लिए ?
रामलालजी सोसायटी में नए नए रहने आये थे । सोयायटी से बाहर जाते समय सदस्यों को विंग का ग्रिल वाला दरवाजा बंद करके बाहर जाना होता था ताकि कोई आवारा कुत्ता या जानवर सीढ़ियों के नीचे की जगह को अपनी शरणस्थली न बना लें । लेकिन रामलालजी अपनी आदत से मजबूर , जब भी गेट से बाहर जाते या अंदर आते गेट खुला छोड़ देते । मौका पाते ही बाहर घूम रहा आवारा कुत्ता विंग में आकर सीढ़ियों के बीच पैर पसारकर सो जाता और भगाने से भी जल्दी नहीं भागता था । रामलाल जी को मैनेजमेंट की तरफ से चेतावनी भी जारी की गई लेकिन उनके कानों पर जूं नहीं रेंगी । एक दिन वह कुत्ता बाहर सड़क पर मृत पड़ा मिला जिसे देखकर सोयायटी के अन्य लोगों ने राहत की सांस ली ।
उस दिन के बाद से रामलालजी की आदत में आश्चर्य जनक तब्दीली देखने को मिली । अब वह आते जाते नियमित गेट बंद करना नहीं भूलते ।
सोसायटी के सेक्रेटरी पवार साहब ने एक दिन पूछ ही लिया ,” रामलालजी ! अब क्या फायदा गेट बंद करके ? कुत्ता तो अब रहा नहीं ? “
मुस्कुराते हुए रामलालजी ने जवाब दिया ,” वही तो ! अब गेट खुला रखना भी तो किसके लिए ? “
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, अति सुंदर व मार्मिक कथा. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीया बहनजी ! अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद !