कविता

कविता – निष्कर्ष

पढोगे तो लिखूंगी
सुनोगे तो सुनाऊँगी
बोलोगे तो बोलूंगी
पास आओगे तो कुछ कहूँगी ।
कभी तो सच का सामना करो
पन्ने खुलेंगे तो जानोगे,
किन्तु परन्तु करोगे तो कुछ न जानोगे
हिम्मत है तो सुनो नहीं तो भटकते रहो,
बिना सुने बिना जाने मन में बोझ लेकर
पंच तत्व में मिल जाओगे ।
बंधन है न टोके जाने का डर
न कुछ खींचातनी,
न मान का मोह न अपमान का डर
हो भी भला क्यों? अभ्यास जो हो गया है।
कई मोड़ ऐसे गुजरे जैसे अश्वमेध किया हो
सालों गुजर गए मुझे परखते तुलना में,
फिर भी कुछ न जाना न समझा
किन्तु कोशिश अब भी जारी है तुम्हारी ।
हंसी आती है अब तो
कहाँ पहुंचना था और कहा पहुंच गए,
मुझे परखते परखते…
अपना चैन तो खोया, साथ में नई कहावतें भी दी
न सिखा पाए न सीखा,
मूक रहकर मैंने क्या जाना?
बात तो ये है…
हेमा पंत अवस्थी

हेमा पंत अवस्थी

एम ए बी एड राजनीति शास्त्र रुचियाँ - कहानी लेखन, संगीत सुनना, गृह सज्जा, पाक कला.