क्या भ्रष्टाचार और काले धन पर अंकुश लगाना संभव है?
हमारे देश में भ्रष्टाचार शायद ही कभी ख़त्म होगा क्योंकि अपना काम निकलवाने के लिए रिश्वत देने की भावना हमारे जींस में ही मौजूद हैं. हम अपना काम निकलवाने के लिए अपने-अपने धार्मिक स्थलों पर जाकर चढ़ावा चढ़ाते है और प्रार्थना करते है कि यदि हमारा काम हो जायेगा तो हम हमारी श्रद्धा के अनुसार और चढ़ावा चढ़ा देंगे. भ्रष्टाचारी वह व्यक्ति है जो अपना काम निकलवाने के लिए रिश्वत देता हैं. ऐसे धार्मिक ट्रस्टों मे दिया गया चंदा या चढ़ावा ही दान कहलाता है जिससे की बच्चों के लिए मुफ़्त शिक्षा, ग़रीबों के लिए मुफ़्त स्वास्थ सेवाएँ, ग़रीबों के लिए भंडारा या मुफ़्त भोजन मिलता हो. काले धन पर प्रहार करने के साथ क्याँ इस पर विचार नहीं किया जा सकता कि काला धन पैदा ही न हो. काले धन की मार सबसे अधिक ग़रीब लोगों और ईमानदार नौकरीपेशा लोगों पर पड़ती हैं. जिन्होंने भ्रष्टाचार से पैसा कमाया है उनके कारण ही ज़मीन-जायदाद एवं सोने-चाँदी के जेवरों के भाव आसमान छू रहे हैं, उन्हीं लोगों के ही कारण महँगाई बढ़ी हैं.
समाजसेवी श्री अन्ना हज़ारे ने सन् 2011 में जिस तरह से भ्रष्टाचार को लेकर देशव्यापी लहर पैदा की थी उससे ईमानदार लोगों के हौसले बुलंद हुए थे और जनता ने देखा था क़ि बिना रिश्वत दिए संबंधित अधिकारियों से समय पर काम करवाए जा सकते हैं. श्री अन्ना हज़ारे ने फिर से भ्रष्टाचार के विरूद्ध बिगूल बजा दिया हैं. वे चाहते है क़ि सरकार अतिशीघ्र लोकायुक्त की नियुक्ति करें. वे `जन लोकपाल क़ानून` बनाने के लिए पूरे देश में सभाएँ आयोजित करके सरकार पर दबाव बना रहे हैं. लेकिन क्याँ सिर्फ़ क़ानून बनाने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जायेगा? क़ानून की धज्जियाँ उड़ाने में हमारी विधायिका और कार्यपालिका काफ़ी माहिर हैं. भ्रष्ट महानुभाओं को निगरानी, सरकार या दंड का भय नहीं हैं. भ्रष्टाचार से लड़ना एक आम आदमी के लिए काफ़ी वेदना से भरा होता हैं. काफ़ी लोग इस वेदना से गुज़रे हैं. अत: अब समय आ गया है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध सभी सामूहिक रूप से प्रहार करें. महात्मा गाँधी का स्वतंत्रता संग्राम का उद्देश्य केवल सत्ता का हस्तांतरण नहीं था, बल्कि व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन करवाना ही उनका मुख्य ध्येय था. श्री अन्ना हज़ारे जो क़ि महात्मा गाँधीजी से काफ़ी प्रभावित है और गाँधीजी के समान एक संत हैं. श्री अरविंद केजरीवाल जो कि श्री अन्ना हज़ारे के 2011 के आंदोलन की ही ऊपज है वे अपनी ही पार्टी के विधायकों के चाल-चलन से भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई में अकेले पड़ गये.
मोदी सरकार से पूर्व काले धन पर सिर्फ़ चर्चा ही होती थी लेकिन प्रधानमत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालते ही काले धन पर प्रहार करना प्रारंभ कर दिया था. मोदी सरकार द्वारा काले धन को अर्थव्यवस्था में लाने के लिए भी बहुत प्रयास किए गये जैसे एसआईटी का गठन, बेनामी लेनदेन निषेध (संशोधन) क़ानून, मनी लाँडरिंग एक्ट, काला धन और कर आरोपण अधिनियम, दोहरा कराधान परिहार करार, स्विटज़रलैंड के साथ सूचना आदान-प्रदान करार. नोटबंदी भ्रष्टाचार, कालाधन, आतंकवादी फंडिंग, जाली करेंसी को समाप्त करने का प्रयास था जो की बहुत हद तक सफल रहा. विमुद्रीकरण के कारण कैशलेस अर्थव्यवस्था का मार्ग सुगम हो गया. कश्मीर में पत्थरबाज़ी और आतंकवादी घटनाएँ भी कम हो गयी. इस दिशा में जीएसटी लागू करना भी मोदी सरकार का एक सराहनीय कदम हैं. जीएसटी से करों की जटिलता समाप्त हो गयी है और अर्थव्यवस्था में वृद्धि के संकेत मिलने लग गये हैं.
नोटबंदी कालेधन पर एक `सर्जिकल स्टाइक` ही थी. नोटबंदी के बाद 35000 कंपनियों के 58 हज़ार खातों में 17000 करोड़ के संदिग्ध लेनदेन पकड़े गये हैं. करीब दो लाख फ्रजी कंपनियों को बंद कराया गया हैं. लगभग 3 हज़ार कंपनी निदेशकों को अयोग्य घोषित किया गया हैं. नोटबंदी के बाद प्रत्यक्ष कर संग्रह में लगभग 16 फीसदी की वृद्धि हुई हैं. नोटबंदी के बाद की गई कार्रवाई में लगभग 5400 करोड़ की अघोषित आय पकड़ में आई हैं. 2016-17 में करीब 90 लाख नये करदाता कर व्यवस्था से जुड़े. हर साल जीतने नये करदाता जुड़ते है उससे 80 फीसदी ज़्यादा करदाता नोटबंदी के बाद बढ़े हैं.
बेनामी संपत्ति पर प्रहार करना मोदी सरकार का अगला कदम होगा. यह कदम भी काले धन को समाप्त करने का एक बड़ा उपाय साबित होगा. जितने भी भ्रष्ट राजनेताओं और अधिकारियों के यहाँ छापे पड़े है उनके यहाँ नकदी, जेवरात के साथ करोड़ों रूपयों की भूमि एवं मकान के दस्तावेज़ बरामद हुए हैं. यदि हमारा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाए तो देश से ग़रीबी का नामो निशान मिट जाएगा. यदि बेनामी संपत्ति पर लगाम लग जाती है तो ग़रीबों के घरों का सपना पूरा हो सकता हैं. भारत और स्विटज़रलैंड के बीच एक समझौता हुआ है जिसके अंतर्गत स्विस बैकों में जिनका काला धन जमा है उनके नाम उजागर होंगे एवं उनकी वापसी की प्रक्रिया भी साझेदारी के तहत प्रारंभ होगी. राजनैतिक दलों को जो चंदा मिलता है उसका भी खुलासा होना चाहिए और उस पर भी टैक्स लगना चाहिए. राजनैतिक दलों द्वारा प्राप्त किए गये चंदे पर भी `सर्जिकल स्टाइक` होनी चाहिए. रियल स्टेट में मकानों के दाम कम हुए है और मोदी सरकार ने बिल्डर्स पर अंकुश के लिए एक कड़ा क़ानून `रेरा` बना दिया है. कालेधन और भ्रष्टाचार की समानांतर व्यवस्था को समाप्त किया जा रहा हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि देश ईमानदारी के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है और भ्रष्टाचार और काले धन पर अंकुश लगाना संभव हैं.
— दीपक गिरकर